Dhanbad,31 july : जज उत्तम आनंद की मौत के मामले में कुछ अन्य सवाल भी सुलग रहे हैं , जैसे दुर्घटना के बाद उन्हें अस्पताल कितने बजे पहुंचाया गया और वहां उनके उपचार की क्या सुविधा उपलब्ध हुई? घायल अवस्था मे आये किसी व्यक्ति के बारे में पुलिस को सूचना देने की क्या व्यवस्था हुई, पुलिस अस्पताल कब पहुंची? जज साहब जब जॉगिंग कर रहे थे तब उनका अंगरक्षक कहाँ था? किन परिस्थितियों में किन सुविधा शर्तों के साथ अंगरक्षक की तैनाती की गई थी? बताया जाता है कि जज स्व उत्तम आनंद क्राइम और क्रिमिनल के खिलाफ सख्त रुख रखते थे। धनबाद में माफिया और अन्य आपराधिक गिरोहों के खिलाफ यहां न्यायालयों में अनगिनत मामले चलते हैं। माननीय न्यायाधीशों व अधिवक्ताओं की सुरक्षा के लिए कितने अंतराल पर पुलिस और जिला प्रशासन द्वारा अपनी निगरानी और सिक्योरिटी व्यवस्था की समीक्षा की जाती है। अनौपचारिक रूप से भी पुलिस अधिकारियों की न्यायिक अधिकारियों के साथ मुलाकात और समन्वय के लिए कोई कारगर परंपरा थी या नहीं? अगर ऑटो चालक शराब के नशे में गाड़ी चला रहा था तब पुलिस द्वारा नशाखोरी और नशे में वाहन चालन पर अंकुश के लिए क्या कार्रवाइयां होती थीं, जबकि कुछ ही महीने पहले राज्य में अवैध ढंग से नशाखोरी के विरुद्ध जोरशोर से कार्रवाइयों का दावा किया गया था और बाकायदा रोज विज्ञप्तियां जारी कर मादक पदार्थों की बरामदगी का प्रचार किया जा रहा था।
ऐसा प्रतीत होता है कि जज साहब की इस दुखद असामयिक मृत्यु से जुड़े आपराधिक साजिश के बिंदुओं के अलावा सिस्टम की समीक्षा उक्त सवालों की कसौटियों पर भी की जानी चाहिए, ताकि जज साहब की यह शहादत व्यर्थ न चली जाए और पूर्ववत सब अपनी- अपनी ड्यूटी करने में मस्त रहें, सिस्टम का सपोर्ट आम जनता को न मिलने की हालत यूं ही बरकरार रहे जैसे चलनी से पानी भरने की कहावत कही जाती है। आमतौर पर सरकारी या किसी भी अस्पताल में अगर किसी जरूरतमंद की पैरवी और पहुंच नहीं हो तब शायद ही उसकी गंभीरता पर व्यवस्था का ध्यान जाता है।कहीं जज साहब भी आम आदमी के इलाज और सुरक्षा की रस्म अदायगी वाली इसी व्यवस्था का शिकार तो नहीं हो गए , क्योंकि पता चलता है कि जज साहब को ज़ख्मी अचेत अवस्था मे किसी अपरिचित ने पहुंचाया और काफी देर बाद परिजनों को खोजबीन के क्रम में उनके अस्पताल में पड़े होने की सूचना मिली ? उस समय तक जज साहब को क्या क्या चिकित्सा सुविधा मिल पाई थी ? मौत के इस विस्मयकारी और सनसनीखेज मामले में क्रिमिनल कनेक्शन के साथ परिणामदायक सिस्टम की चूक को भी पकड़ना ही जज साहब की दिवंगत आत्मा को शांति और न्याय दिला सकता है। बेहतर हो राज्य सरकार मामले की जांच CBI को सुपुर्द कर दे, क्योंकि यह घटना जितनी चर्चित हो गयी कि राज्य की पुलिस दबाव में आ गयी दिखती है । वह जिस नतीजे पर पहुंचेगी, शंका की दृष्टि से ही देखा जाएगा। इसके अलावा जांच के साथ साथ सिस्टम सुधार के लिए कार्रवाई की अनुशंसा का दायरा भी सी बी आई के पास है। सरकार को दिवंगत न्यायाधीश की आश्रित पत्नी और बच्चों के जीवन यापन हेतु भी कोई स्थायी उपाय करना चाहिए।