जातीयता को एक ओर समाज को तोडऩे वाला बताया जाता है। ऊंच-नीच का भेदभाव पैदा करने वाला बताया जाता है। लेकिन दूसरी ओर सरकारी नौकरियों, योजनाओं में जातीयता के आधार पर मानक योग्यता तय किये जाते हैं। योग्यता को पीछे छोड़कर जाति को महत्व मिलता है। जातीय गणना को लेकर कुछ राजनीतिक दलों की बेचैनी अब रोके नहीं रुक रही है। राजनीति में जाति का बड़ा महत्व होता है। हाल ही मंत्रिमंडल विस्तार के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि ऐसा नहीं है कि जिन्हें मंत्रिमंडल से हटाया गया, वे अयोग्य थे, लेकिन राजनीति में बहुत चीजो का ध्यान रखा जाता है। समीकरणों का बड़ा महत्व होता है। नये मंत्रियों का लोक सभा एवं राज्य सभा में परिचय करने के समय विपक्ष के हंगामा पर प्रधानमंत्री ने ऐतराज जताते हुएकहा कि पिछड़ों को मंत्री बनाया गया यह विपक्ष को पच नहीं रहा। आशय यह कि राजनीति में योग्यता जाति पर हावी रहती है।
इस समय उतर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे राजनीतिक दल ब्राह्मणों को अपनी ओर खींचने में लगे है। यूपी में कुछ अपराधियों पर हुई कार्रवाइयों को ब्राह्मणों से जोड़ा जा रहा है और इसी का लाभ उठाने में राजनीतिक दल कूद पड़े है। दलितों की राजनीति करने वाली मायावती की बसपा ने ब्राह्मण सम्मेलन किया तो यादवों को वोटबैंक मानने वाली सपा ने भी ब्राह्मणों को अपनी ओर खींचने की तैयारी शुरु कर दी है। अब तक ब्राह्मण भाजपा के वोट बैंक माने जाते रहे है, वे कहीं छिटके नहीं इसे लेकर भाजपा परेशान है। भाजपा कांग्रेस के युवा चेहरा जितिन प्रसाद कोअपनी पार्टी में शामिल कर उनके जरिये ब्राह्मणों को पटाने में लगी है। उन्हें योगी मंत्रिमंडल में शामिल करने की योजना है।
आशय यह कि राजनीतिक दलों को लिये वोट बैंक ही सबकुछ होता है। सत्ता प्राप्ति का जो भी मार्ग हो उसे अपनाया जाता है। बिहार, यूपी जैसे प्रदेशों में खासकर जातीय राजनीति खूब होती है। वैसे देखा जाए तो देश का कोई भी हिस्सा इससे अछूता नहीं है। राजनीतिक दल खुलेआम जातीय आधार पर ही उम्मीदवार तय करते है, उसी आधार पर मंत्रिपद मिलता है। एक नेता के जरिये पूरी जाति का प्रतिनिधित्व मान लिया जाता है। भले ही मंत्री बनने के बाद वह नेता किसी को अपने दरवाजे पर बैठने तक को नहीं बोलता लेकिन उसकी जाति के लोग झण्डाबुलंद किये रहते है।
समाज में जातिगत बाते करना बड़ा अशोभनीय अव्यवहारिक माना जाता है, लेकिन व्यवहार में सबकुछ उसके उलट होता है। खासकर राजनीति में तो जाति ही सबसे बड़ी योग्यता कई मौके पर बन जाती है.