बेवशी-पत्थर की गुफा में रहने को विवश है डुमरिया का सबर दम्पत्ति


डुमरिया, 21 जुलाई: आजादी के सात दशक बाद तथा झारखण्ड राज्य बने बीस साल बीत गये इसके बावजूद आज लोगों को बुनियादी समस्या से निजात नहीं मिल पाई है। इसे सरकारी पदाधिकारी की उदासीनता कहें या इनके भाग्य में यही दस्तूर लिखी है। आज भी आदिम जनजाति के लोग सरकार कल्याणकारी से वंचित होकर कोई पेड़ के नीचे तिरपाल, तो कई पत्थर की गुफा में रहकर जीवन जीन को विवश है। ऐसा ही एक मामला प्रकाश में आया है। जानकारी के अनुसार डुमरिया प्रखण्ड के खैरबनी पंचायत के गांव दामूकोचा के टीला डुंगरीडीह के लधरो सबर अपनी पत्नी सोमबारी सबर के साथ जंगल में पत्थर की एक गुफा में रहकर अपनी जिंदगी की गाड़ी खींच रहे है। ग्रामीणों नुदू मार्डी एवं उधू सबर ने बताया कि लधरो सबर अपने मां-बाप के द्वारा बनायी गयी झोपड़ी में रह रहा था। लेकिन समय के साथ उक्त झोपड़ी छावनी नहीं करने से धीरे-धीरे गिरने लगी। जब उक्त झोपड़ी रहने लायक नहीं रही तो मजबूर होकर लधरो सबर पत्थर की गुफा में अपनी पत्नी संग रहने लगा। इसके बाद न तो मुखिया उनकी सुध ली और न ही किसी प्रशासनिक पदाधिकारी ने उनकी इस स्थिति से अवगत होकर इसका निदान का प्रयास किया
लधरो सबर वही पत्थर की गुफा में रहकर अपने जिंदगी गुजार रहे है। ग्रामीणों के अलावे लधरो सबर ने बताया कि वर्तमान बीडीओ साधु चरण देवगम जब गांव पहुंचे थे,अधूरे बिरसा आवास का निरीक्षण के दौरान मेरे गुफा में भी पहुंचे थे तथा ठोस आश्वास देकर गये है। लेकिन आज तक मेरे नाम कोई आवास आवंटित नहीं हुआ लधरो सबर आगे बताया कि बीते दो महीने पूर्व मेरे टोले के रीड़े मार्डी पति मंगल मार्डी की बीमारी से मौत हो गयी, उनका पति मंगल मार्डी घर द्वार छोड़ अपने पैतृक गांव उड़ीसा चले जाने से तथा उनकी कोई संतान नहीं होने के कारण उनका घर खाली था। घर की फूस की छावनी सड़कर पानी गिर रहा था तब ग्रामीणों के आदेश पर घर छावनी की एवं फूस चढ़ायी एवं बीते दो महीने से मंगल मार्ड के घर में रह रहा हूं और भाग्य को कोस रहा हूं कि मेरे नसीब यही हैं या नया मकान मुझे भी मिलेगी।

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