कोर्ट ने कहा अंग्रेजों की ओर से बनाया गया था कानून
नई दिल्ली,। सुप्रीम कोर्ट ने ‘औपनिवेशिक काल’ के राजद्रोह संबंधी दंडात्मक कानून के ‘भारी दुरुपयोग’ पर गुरुवार को गहरी चिंता व्यक्त की। राजद्रोह कानून को औपनिवेशिक काल की देन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया है कि आखिर इसे हटाया क्यों नहीं जा रहा। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यह देश में आजादी के आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों की ओर से बनाया गया कानून था। इसी बीच पूर्व केंद्रीय आईटी मंत्री अरुण शौरी ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 1860 की धारा 124-ए (देशद्रोह कानून) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने कहा कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 (A) का उल्लंघन है।
वहीं, आज ब्रिटिश काल के राजद्रोह कानून मामले में प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी किया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (देशद्रोह) की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और एक पूर्व मेजर जनरल द्वारा दायर याचिकाओं पर विचार करने के लिए सहमति जताते हुए पीठ ने कहा कि इसकी मुख्य चिंता ‘कानून का दुरुपयोग’ है।
गैर-जमानती प्रावधान किसी भी भाषण या अभिव्यक्ति को बनाता है जो भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमानना या उत्तेजित करने या असंतोष को उत्तेजित करने का प्रयास करता है। यह एक आपराधिक अपराध है जो अधिकतम आजीवन कारावास की सजा के साथ दंडनीय है।
अटार्नी जनरल से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम कुछ प्रश्न पूछना चाहते हैं। यह औपनिवेशिक युग का कानून है और इसी कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए किया था। इसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी, गोखले और अन्य को चुप कराने के लिए किया था। क्या आजादी के 75 साल बाद भी इसे कानून में बनाए रखना जरूरी है? इस पीठ में जस्टिस ए एस बोपन्ना और हृषिकेश रॉय भी शामिल थे।