दिल्ली हाईकोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता को लेकर अहम बात कही है। मीना जनजाति की एक महिला और उसके हिंदू पति के बीच तलाक के मुकदमे की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने कहा कि देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत है और इसे लाने का यही सही समय है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में जरूरी कदम उठाने को कहा है।
कोर्ट ने कहा कि भारतीय समाज में जाति, धर्म और समुदाय से जुड़ी बाधाएं मिट रही हैं। इस बदलाव की वजह से दूसरे धर्म और दूसरी जातियों में शादी करने और फिर तलाक होने में दिक्कतें आ रही हैं। आज की युवा पीढ़ी को इन दिक्कतों से बचाने की जरूरत है। इस समय देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड होना चाहिए। आर्टिकल 44 में यूनिफार्म सिविल कोड को लेकर जो बात कही गई है, उसे हकीकत में बदलना होगा।
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी देश के सभी नागरिकों के लिए एक जैसा पर्सनल लॉ। संविधान के आर्टिकल 44 के मुताबिक, यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करना राज्य की ड्यूटी है। अभी हिंदू और मुसलमानों के लिए अलग-आग पर्सनल लॉ हैं। इसमें प्रॉपर्टी, शादी, तलाक और उत्तराधिकार जैसे मामले आते हैं। यूनिफॉर्म सिविल कोड पर पॉलिटिकल बहस होती रही है। अक्सर सेक्युलरिज्म से जुड़ी बहसों में भी इसे शामिल किया जाता रहा है। जो लोग इसके समर्थन या विरोध में हैं, उनकी इसके सोशल और रिलिजियस असर को लेकर अलग-अलग सोच है। भाजपा हमेशा से इसके फेवर में रही है, जबकि कांग्रेस विरोध करती रही है।
पहली बार कब आया सुर्खियों में?
1985 में शाहबानो केस के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड सुर्खियों में आया। सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के बाद शाहबानो के पूर्व पति को गुजारा भत्ता देने का ऑर्डर दिया था। इसी मामले में कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि पर्सनल लॉ में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होना चाहिए। राजीव गांधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए संसद में बिल पास कराया था।