नई दिल्ली
फेसबुक को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। कोर्ट ने दिल्ली दंगे को लेकर दिल्ली विधानसभा के पैनल की तरफ से फेसबुक इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट को जारी किए गए समन पर रोक लगाने से इनकार किया है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कुछ बेहद तल्ख टिप्पणियां भी की। कोर्ट ने कहा कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स रेलवे प्लेटफॉर्म्स की तरह नहीं हैं जहां ट्रेनों की आवाजाही नियंत्रित होती है। सोशल मीडिया के जरिए छेड़छाड़ से आज लोकतांत्रिक बुनियाद को खतरा होता दिख रहा है।
‘सोशल मीडिया मैनिपुलेशन से लोकतंत्र की बुनियाद को खतरा’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘…दुनियाभर में स्थापित स्वतंत्र लोकतंत्रों में इस तरह का असर देखा जा रहा है और वो चिंतित हैं। चुनाव और वोटिंग प्रक्रिया जो लोकतांत्रिक सरकार की बुनियाद होती हैं, उनके लिए सोशल मीडिया तिकड़मों से खतरा बना हुआ है।’
‘पूरी तरह अनियंत्रित भी हो सकते हैं डिजिटल प्लेटफॉर्म’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘तकनीकी युग ने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पैदा किए हैं- ये रेलवे प्लेटफॉर्म्स की तरह नहीं हैं जहां ट्रेनों का आना-जाना नियंत्रित होता है। ये डिजिटल प्लेटफॉर्म्स किसी समय पूरी तरह अनियंत्रित हो सकते हैं, इनकी अपनी चुनौतियां हैं।’
‘सोशल मीडिया बहुत ताकतवर, जिम्मेदारी भी होनी चाहिए’
सोशल मीडिया की ताकत का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके मार्च 2021 तक 2.85 अरब मंथली ऐक्टिव यूजर्स हैं। यह दुनिया की कुल आबादी के एक तिहाई से ज्यादा है। कोर्ट ने कहा, ‘अगर राष्ट्रीय संदर्भ में देखें तो भारत में फेसबुक सबसे लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है जिसके करीब 27 करोड़ रजिस्टर्ड यूजर्स हैं। इतने बड़ी ताकत के साथ जिम्मेदारी जरूर होनी चाहिए।’
फेसबुक ने लोगों को ताकत दी लेकिन इसके नुकसान भी कम नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने साथ में यह भी कहा कि फेसबुक ने लोगों को आवाज उठाने और अभिव्यक्ति की आजादी देने में अहम भूमिका निभाई है। इस पर राज्य का पहरा नहीं होना चाहिए लेकिन इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि इसी प्लेटफॉर्म से विध्वंसकारी संदेश, आवाज और विचारधारा भी उभर रही है।
यह है पूरा मामला
दरअसल, फरवरी 2020 के दिल्ली दंगे के मामले में दिल्ली विधानसभा की शांति एवं सौहार्द समिति ने फेसबुक इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट और एमडी अजीत मोहन को समन भेजा है। समिति ने पिछले साल 10 और 18 सितंबर को मोहन को समन भेज उन्हें अपने सामने पेश होने को कहा है। समिति ने यह समन दंगे के दौरान कथित भड़काऊ भाषणों के फैलने में उसकी भूमिका की जांच के सिलसिले में भेजा है। फेसबुक ने समन को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी। उसी पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये तल्ख टिप्पणियां कीं और याचिका को रद्द कर दिया। हालांकि, पिछले साल 23 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक को राहत देते हुए दिल्ली विधानसभा की समिति को उसके खिलाफ किसी तरह की दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने का आदेश दिया था।