जमशेदजी टाटा को 20वीं सदी का सबसे बड़ा परोपकारी चुना जाना पूरे भारत के लिये गौरव की बात है। टाटा समूह के संस्थापक के परोपकार के आगे पूरी दुनियां के एक से बढ़कर एक परोपकारी बौने साबित हुए। हुरुन रिपोर्ट और एडेलगिव फाउंडेशन द्वारा तैयार शीर्ष 50 दानदाताओं की सूची में पिछले 100 साल में दुनियां के तमाम दानकर्ताओं को शामिल किया गया। 50 दानकर्ताओं की जो सूची जारी की गई उसमें भारत के अजीम प्रेमजी भी शामिल हैं। गर्व की बात यह है कि जे एन टाटा ने जहां 74.6 अरब डालर दान किये वहीं दूसरे स्थान पर आये वॉरेन बफे 37.4 अरब डालर के साथ उनमें काफी पीछे हैं। मुख्य शोधकर्ता रुपई हुगवेर्फ ने कहा कि भले अमेरिकी और यूरोपीय लोग परोपकार की सोंच के लिहाज से पिछली शताब्दी में सबसे आगे रहे हो, लेकिन भारत के जमशेदजी टाटा दुनियां के सबसे परोपकारी व्यक्ति है। जमशेदजी टाटा ने पिछले 100 सालों में करीब 7.60 लाख करोड़ रुपए दान देकर सबसे बड़े दानवीर का दर्जा हासिल किया है। यह रकम रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन मुकेश अंबानी की कुल नेटवर्थ 84 अरब डॉलर, यानी करीब 6.25 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा है।
अच्छी बात है कि जमशेदजी टाटा के उस दर्शन को आज भी टाटा समूह उसी ईमानदारी के साथ आगे बढ़ा रहा है। कोरोना महामारी के इस दौर में जब बड़ी-बड़ी कंपनियों ने हाथ समेटना शुरु किया वहीं टाटा स्टील ने कोरोना संक्रमण से मृत कर्मियों के परिजनों के लिये ऐसी सुविधायें मुहैया कराने की घोषणा की जिसकी मिसाल कम ही देखने को मिलती है। प्रतिस्पर्धा एवं वैश्विक बाजार के इस दौर में भी टाटा समूह सामाजिक सरोकार में भी सबसे आगे रहा है। यही कारण है कि टाटा ब्रांड के आगे सभी पिछड़ जाते है। टाटा को विश्वास का दूसरा स्वरूप इसीलिये माना जाता है। 90 के दशक में टाटा का यह नारा काफी प्रभावी था कि हम इस्पात भी बनाते है। कंपनी की सोच थी कि इस्पात नहीं मानव संसाधन तैयार करना उसकी प्राथमिकता है, इस्पात तो खुद व खुद बन जाता है। इसी परस्पर विश्वास का परिणाम रहा कि 90 के दशक के उदारीकरण के दौर में कंपनी ने बाजार और मानव संसाधन दोनों में समन्वय कायम कर खुद को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया। टाटा स्टील के तत्कालीन प्रबंध निदेशक डा. जे जे इरानी ने कई मौको पर कहा था कि टाइटेनिक को घुमाना आसान नहीं होता। करीब 70 हजार कर्मचारियों वाली कंपनी टाटा स्टील ने खुद को विश्व स्तरीय अत्याधुनिक कंपनी बना लिया। यह कोई साधारण बात नहीं। कंपनी का परोपकार इसकी नीतियों में शामिल हैं। जब कोरोना महामारी के कारण पिछले साल मार्च में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरे देश में संपूर्ण लॉकडाउन लगाया था तो उस दौरान भी रतन टाटा ने सभी कारपोरेट घरानों एवं कारोबारियों से अनुरोध किया था कि काम बंद होने के कारण अपने उन कर्मचारियों का वेतन न रोके जो इतने सालों से आपको सेवा प्रदान कर रहे हैं। उनकी इस अपील का असर भी हुआ था। यह झारखण्ड के लिये भी गौरव की बात है कि जमशेदजी टाटा ने अपने कारोबारी साम्राज्य की नींव यहीं रखी।