Chandil,12 June: । झारखंड राज्य में आदिम जनजाति समुदाय है जो विलुप्त हो रहा है। इनमें खड़िया, पहाड़िया, सबर आदि जातियां हैं। इनके संरक्षण व उत्थान के लिए केंद्र व राज्य सरकार की ओर से तरह तरह की योजनाएं संचालित की जा रही हैं लेकिन धरातल पर वस्तुस्थिति कुछ और ही है जबकि करोड़ों रुपए इनके सम्बर्धन पर खर्च हो रहे हैं। उदाहरण के रूप में देखा जाय तो एक समय जमशेदपुर के डिमना रोड (संकोसाई) स्थित खड़िया बस्ती में आदिम जनजाति समुदाय की घनी आबादी बासोबास करती थी। वहां हजारों की संख्या में आदिम जनजाति परिवार रहते थे लेकिन वर्तमान समय में नाममात्र के रह गए हैं। पता चला है कि अब वहां केवल एक दर्जन परिवार हैं। बाकी लोगों का कोई अता पता नहीं। यहां रहने वाले डिमना लेक के आसपास के जंगलों से कंद मूल, फल, दातुन इत्यादि लाते हैं और मानगो बाजार में बेचकर जीवन यापन कर रहे हैं। यही स्थिति सरायकेला खरसवां जिले की है। सरायकेला खरसवां जिले के चांडिल व नीमडीह प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न गांवों में आदिम जनजाति के लोग रहते हैं। चांडिल प्रखंड के आसनबनी, जामडीह, रामगढ़, कांदरबेड़ा, माकुलाकोचा, कदमझोर, काठजोड़, चाकुलिया, डूंगरीडीह, आमकोचा, माचाबेड़ा, दिगारदा, कदमबेड़ा, घुंघुकोचा, पासानडीह, बाड़ेदा, कोड़ाबुरू में आदिम जनजाति हैं। नीमडीह प्रखंड के तनकोचा, तेंतलो, उगडीह, बिंदुबेड़ा, फाड़ेंगा, पोड़ाडीह, डाहूबेड़ा, सामानपुर, भांगाठ, माकुला, बुरुडीह, बाड़ेदा में भी हैं। झारखंड सरकार के 2013 के सर्वेक्षण आंकड़ा अनुसार सरायकेला खरसवां जिले में कुल 650 आदिम जनजाति परिवार हैं जिसमें कुचाई प्रखंड को भी शामिल किया गया है। कुचाई प्रखंड में भी आदिम जनजाति हैं। एक समय इन गांवों में काफी संख्या में आदिम जनजाति समुदाय के लोग हुआ करते थे लेकिन धीरे धीरे ये विलुप्त हो गए। विलुप्त होने की रिपोर्ट पर केंद्र व राज्य सरकार ने संरक्षण के उद्देश्य से कई तरह की योजनाओं की शुरुआत की। इनको विशेष ध्यान देना सुनिश्चित किया गया।
बहरहाल, अब कोरोना काल है, ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि सरकार ने आदिम जनजाति समुदाय के लिए क्या किया? ये आदिम जनजाति समुदाय केवल जंगल उत्पाद पर निर्भर रहते हैं। रोजाना जंगलों के कंद मूल, फल, फूल, लकड़ी, पत्ते इत्यादि तोड़कर आसपास के कस्बों व बाजार में बेचते हैं। यही रोजी रोटी का मुख्य साधन है। 2020 से कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन ने इनका यह रोजगार भी छीन लिया । दूसरी ओर कोरोना संक्रमण का खतरा भी है। लॉक डाउन, बेरोजगारी, संक्रमण के बीच संघर्ष कर रहे आदिम जनजाति समुदाय के लिए अबतक सरकार की ओर से किसी तरह का विशेष राहत कार्य नहीं चलाया गया है। आम गरीबों की तरह ही इन्हें आपूर्ति विभाग की ओर से प्रतिमाह केवल चावल उपलब्ध कराया जाता हैं। इसके अलावा अन्य किसी तरह की सुविधा कोरोना काल में नहीं मिली है। माकुलाकोचा के रवि सबर ने बताया कि राशन डीलर की ओर से केवल चावल मिलता हैं। लेकिन, इसके अलावा प्रत्येक परिवार को कपड़े, तेल, साबुन, मसाला, सब्जी, दवा इत्यादि की जरूरत पड़ती हैं। इस तरफ भी प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। जंगल उत्पाद बेचकर रोजाना 100 – 200 रु आमदनी होती थी लेकिन लॉक डाउन के कारण वह पूरी तरह बंद हो गई हैं।
आदिम जनजाति समुदाय के सुकलाल पहाड़िया ने कहा कि राज्य सरकार को आदिम जनजाति समुदाय पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आदिम जनजाति समुदाय को दैनिक उपयोग की तमाम जरुरतों की सामग्री सरकार को उपलब्ध करानी चाहिए।