चांडिल : मनुष्य का एक घुमंतू प्रजाति है जिसे ”अघोरी” के नाम से जाना जाता है। बंदर होते है इनलोगों का हमसफ़र और रोजगार का साधन। इनलोगों का बसेरा है किसी गांव में पेड़ के नीचे। सुबह होते ही खाना-पीना कर बंदर को साथ लेकर निकल जाते हैं गांव-गांव में बंदर का खेल दिखाकर पैसे कमाने। जीविका चलाने का एकमात्र साधन है। न ही इनलोगों के पास आधार कार्ड है और न ही वोटर कार्ड। क्योंकि स्थायी निवासी नहीं होने के कारण सरकार के जनगणना पंजी में नाम भी दर्ज नहीं है। इससे साफ जाहिर है कि इनलोगों को किसी भी प्रकार का सरकारी सुविधा प्राप्त नहीं है।
कोरोना महामारी से कोसो दूर है अघोरी समुदाय
धूप, बारिश, ठंडी, गर्मी आदि मौसम का विपरीत परिस्थितियों में भी वे लोगों का सहारा है पेड़ का छाँव। अगर तेज बारिश होती है तो एक दो दिन के लिए किसी स्कूल या किसी के घर के बरामदे को अपना बसेरा बनाते हैं फिर वही पेड़ के नीचे ही बनता है ठिकाना। वे लोग न अस्पताल जाते है और न ही मेडिकल स्टोर। शायद न बीमार होते हैं और न ही दवा की जरूरत पड़ती है। सुखाई नामक अघोरी से कोरोना महामारी के संबंध में पूछा गया तो बताया कि लोगों से बातें सुन रहे थे लेकिन क्या है नहीं जानते हैं। शायद प्रकृति ने इन समुदाय का जीवन रक्षा की जिम्मेदारी उठाया है।