किसी को समय बडा बनाता है और कोई समय को बडा बना देता है।कुछ लोग परत दर परत तोडकर उसमें वर्तमान के लिए ऊर्जा एकत्र करते हैं और कुछ लोग वर्तमान की समस्याओं से घबराकर अतीत की ओर भाग जाते हैं।कर्मठता के प्रतीक डा भुवनेश्वर अनुज ऐसे नेक दिल इन्सान थे,जिन्होंने कभी समस्याओं से मुहं नहीं मोडा अपितु विघ्नों को कुचलकर अपनी कामयाबी का झंडा फहराया और मुकाम हासिल किया।
आज 2.4.21को अचानक उनके निधन का समाचार पढा तो अवाक् रह गया।सहसा विश्वास नही हुआ तो संजय गांधी मेमोरियल कालेज की विदुषी प्राध्यापिका डा पंपा सेन विश्वास प्राचार्य डी एल शर्मा, डा प्रशांत गौरव से चलभाषः से बात की और मेरा यह अविश्वास विश्वास मे बदल गया ।
12अक्टूबर 1935 को एक अत्यंत निर्धन कृषक परिवार मे जन्मे डा भुवनेश्वर अनुज अपनी कर्मवीरता के बदौलत कई शैक्षणिक संस्थाओं के जनक थे।1980में स्थापित संजय गांधी मेमोरियल कालेज रांची और बसिया कालेज बसिया इसके ज्वलंत उदाहरण हैं।
उनसे मेरा पुराना संबंध था।2011 से2015 तक मे रांची विश्वविद्यालय मे कालेज निरीक्षक था।इनके दोनों कालेजो के निरीक्षण का सौभाग्य मुझे मिला था।उन्होने मुझसे कहा सभी अर्हताओं के बावजूद इन कालेजों को स्थायी संबंधन नहीं मिल सका है। मेरा एक ही सपना है स्थायी संबंधन दिलाना मै तन मन धन से तैयार हूं।मैने कहा आपको तन और मन से तैयार होना है।स्थायी संबंधन मिल जाएगा और मेरे रहते ऐसा ही हुआ।
अचानक उनका जाना समाज और साहित्य की अपूरणीय क्षति है।वे उच्च कोटि के साहित्यकार और कवि भी थे।नागपुरी-झारखंडी साहित्य के पुरोधा विद्वान थे।डॉ. अनुज 85 साल के थे। डॉ. भुवनेश्वर अनुज एक जाने-माने भाषाविद, नागपुरी लोक साहित्य के अध्येता व संग्राहक, अनेक पुस्तकों के रचयिता, कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादक-प्रकाशक और एक शिक्षाविद थे। उन्होंने नागपुरी भाषा-साहित्य के उन्नयन के लिए जीवनभर प्रयास किया और कई स्कूल व कॉलेज खोले। उनकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें हैं- नागपुरी लोक साहित्य, अतीत के दर्पण में झारखंड, छोटानागपुर के प्राचीन स्मारक, झारखंड के शहीद, सीतक बूंद, नागपुरी और उसका लोकमानस, नागपुरी लोककथा साहित्य, नागपुरी पद्य लोक साहित्य, नागपुरी गद्य लोक साहित्य आदि। इसके अलावा कई पुस्तकों का संपादन भी किया है, जिसमें मुख्य हैं- दुई डाइर बीस फूल, एक झोपा नागपुरी फूल, खुखड़ी रूगड़ा आदि। अनेक पुरस्कारों से् सम्मानित डॉ. भुवनेश्वरअनुज आकस्मिक निधन साहित्य प्रेमियों और झारखंड को हतप्रभ करने वाला है।उनके निधन पर नजीर बनारसी की ये पंक्तियां सहसा याद आ रही हैं
तेरे गम ने ऐसा गम दिया है,दिल दाग दाग है।
लाखों चिराग घर में हैं फिर भी घर बेचिराग है।