सरस्वती के वरद् साधक प्रभात जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे।पुलिस सेवा में उच्च पद पर रहते हुए भी इन्होंने साहित्य की अपूर्व सेवा की यह इनके साहित्य प्रेम का परिचालक है।इनकी कवि प्रतिभा किशोरावस्था मे ही अंगडाई ले उठी थी और 1928 में ही कलेजे के टुकडेके नाम से इनकी षट्पदियों का एक संग्रह निकल गया।
प्रशासकीय व्यस्तता और सीमा मे आबद्ध होते हुए भी वे साहित्य साधना में सतत् संलग्न रहे।अपनी साधना के क्रम में ये क्रमशः भावुकता और कल्पना के शिखर से अनुशीलन और चिंतन की गहराई की ओर बढते गए।
प्रभात जी मूलतः कवि थे किन्तु साहित्य की अन्य विधाओं पर भी इनकी लेखनी साधिकार चली है।प्रभात जी ने प्रायः सभी वर्ग के पाठको के लिए साहित्य सर्जना की है।बालको के लिए सत्यं शिवं सुन्दर *किशोरों के लिएसमुद्र के मोतीआश्चर्यजनक कहानियांमनोरंजक कहानियांमूर्खों की कहानियां परिणत वय के लिए कंपनएवम् चिर स्पर्श उक्त कथन के प्रमाण हैं।
डा जंग बहादुर पाण्डेय
गीतकार प्रभात का विकास प्रबंधकार के रुप में हुआ है और प्रबंधकार के रुप मे वे अधिक विख्यात हैं। कैकेयी,ऋतंवरा,प्रभास कृष्ण, तप्त गृह, कर्ण,व्रत बद्ध,अस्ति दान,मुक्ति संग्राम, राष्ट्र पुरुष श्वेत नील,कलापिनी,कंपन,सेतुबंध,शुभ्रा, और प्रवीर जैसे प्रबंध काव्यों की रचना कर उन्होंने इस क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है।
उनका कैकेयी प्रबंध काव्य की चिर कलंकिनी कैकेयी के कलंक प्रक्षालन के निमित्त किया गया एक सफल एवम् साधु साहित्यिक प्रयास है।यहाँ युग युग की कलंकिनी कैकेयी राष्ट्र माता के रुप मे निखर उठी है।उसने राष्ट्र की जय के लिए अपने वैधव्य तक को स्वीकार कियाः
वैधव्य मुझे स्वीकार राष्ट्र की जय हो,
दासत्व न अंगीकार राष्ट्र की जय हो।
प्रभात जी के अनुसार राम वन गए तो वन गएवन की ओर राम का जाना मानवता की जय हैआर्य सभ्यता संस्कृति की जय है
शत नमन मेरा तुम्हेशीर्षक कविता में उन्होने राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के दिव्य कर्मो की चर्चा करते हुए उनका अभिनंदन किया हैः
शत नमन मेरा तुम्हे।
तुम सहस्त्रों सूर्य का आलोक ले फहरा रहे हो।
तुम सहस्त्रों इन्द्र धनुष से व्योम में लहरा रहो हो
तुम सहस्त्रों स्वप्न आशाएं अनंत उगा रहो हो
प्रतिअखंड तरंग कंपन से नया युग ला रहो हो
जागरण के चिन्ह!जागृति के तुमुल उल्लास!
शत नमन मेरा तुम्हे।
11 सितम्बर1907को वीर भूमि आरा में जन्मे ऐसे राष्ट्र के गौरव गायक महाकवि प्रभात जी का 2 अप्रैल 1984 को पटना में आकस्मिक निधन हो गया। उनको कोटिशः नमन वदंन अभिनंदन हैऔर परमात्मा से प्रार्थना हैः
एक पंछी गा चुका है एक पंछी और गाए।
एक बार वे आ चुके हैं,एक बार वे और आएं।