उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की फटी जिंस वाली टिप्पणी को लेकर सोशल मीडिया से लेकर संसद तक बहस हो रही है। सीएम पर कटाक्ष करने वाले इसे फटी सोच का परिणाम बता रहे है। बहुतो को इसके जरिये भाजपा और खासकर आर एस एस पर हमला करने का मौका मिल गया है ,सो वे दोनों हाथों इस अवसर को लूटने में लगे हुए हैं। खासकर फिल्मी दुनिंया में इस बयान से सबसे अधिक प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। जिस भारत में पहनावा को बहुत अहमियत दी जाती है ,खासकर आम भारतीय परिवार के लिये ‘शालीय पहनावा’ का बहुत महत्व माना जाता है, वहां ‘फटी जिंस’ वाली टिप्पणी को लेकर खूब हमले हो रहे है। इसमें कोई दो राय नहीं कि खान-पान और पहनावा निजी इच्छा की चीजे है और इसमें खासकर मुख्यमंत्री स्तर से टिप्पणी से बचना चाहिए। यह कौन नहीं जानता कि बहुत सारे ऐसे पहनावे है जिनको सार्वजनिक स्थल पर पहनने पर ‘बहुत’ लोग असहज महसूस करने लगते है। शालीन वस्त्रों के प्रयोग की अपनी अहमियत है और जिन स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी में ‘खुलापन’ का बहुत जोर रहता है, वहां भी खास कार्यक्रमों का अपना ड्रेस कोड होता है। वह ऐसे आयोजनों की भव्यता दर्शाती है। सरकारी अधिकारियों के लिये भी ड्रेस कोड हैं। एक विधायक के विधान सभा में टीशर्ट में प्रवेश पर टोक दिया गया था। तब कोई बवाल उस विधायक ने नहीं किया। उसने माना कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिये था। विचित्र समाज है हमारा. एक वर्ग है जो मजबूरी में फटे कपड़े पहनने को विवश है और उसे वह छिपाये चलता है, वहीं दूसरी ओर एक वर्ग ऐसा भी है जो फटे को दिखाना ंफैशन मानता है।
सोच, पहनावा सहित कई मामलों में हमारा देश दो भागो में साफ बटा दिखता है। भारत और इंडिया की सोच में जमीन आसमान का फर्क होता है। वालीवुड की अलग दुनियां है। फिल्मों में बहुत कुछ दिखाया जाता है जो आम जनजीवन में सहज नहीं माना जाता। वालीवुड की ड्रेस डिजाइन की पूरे देश में कापी होती है। एक तरह से वालीवुड तय करता है कि हमारी पीढ़ी को क्या पहनना है। यदि उसके इतर कोई ड्रेस कोड पर टिप्पणी करे तो यह पसंद नहीं किया जाता। एक बार फिर कहना है कि मुख्यमंत्री श्री रावत को ऐसी टिप्पणी से बचना चाहिए था, लेकिन यह भी कौन नहीं जानता कि उनके बयान का मौन समर्थन करने वालों की भी बहुत बड़ी संख्या है।
हम जिस समाज में रहते है वहां बहन, बेटी, बहु, पत्नी हर किसी के पहनावे को लेकर हमारी सोच बदल जाती है। खुलापन आज के समय की पहचान है लेकिन खुलापन एवं अश्लीलता का अंतरं बहुत बारीक है। वह अंतर कब इधर से उधर जो जाता है यह व्यक्ति कीसोच और परिस्थिति पर निर्भर करता है। उसअंतर कोलोग अपने-अपने नजरिये से लेते हैं। अब जबकि हमारे समाज में बेटो और बेटियों के बीच का भेद तेजी से कम हो रहा है। ऐसे परिवारों की संख्या लगातार बढ रही है जहां दोनों को समान स्तर की सुविधायें, शिक्षा मुहैया कराई जा रही है। लेकिन इस बात पर हमेशा जोर दिया जाना चाहिए कि खुलापन का यह अर्थ कतई नहीं होना चाहिए कि हम शालीनता का त्याग करे। पश्चिमी देश भारतीय परंपराओं से आकृष्ट होते है और हम पश्चिमी देशों के फैशन से। यही कारण है कि फटी जिंस जो किसी की मजबूरी का वस्त्र है वह किसी के लिये शॉन का प्रतीक हो गया है।