Dehradun,9 March.उत्तराखंड में पिछले 3 दिन से जारी सियासी उठापटक के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने राजभवन पहुंचकर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को अपना इस्तीफा सौंपा। राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत को अगला मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। उन्हें सरकारी हेलीकॉप्टर से देहरादून बुलाया गया है। इस्तीफे के बाद रावत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि कल (बुधवार) सुबह 10 बजे पार्टी विधायक दल की बैठक बुलाई गई है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में रावत ने कहा, ‘मैं लंबे समय से राजनीति में काम कर रहा हूं। भाजपा ने जीवन का यह स्वर्णिम अवसर मुझे दिया था। मैंने छोटे से गांव में जन्म लिया, पिताजी पूर्व सैनिक थे। कभी कल्पना भी नहीं की थी कि पार्टी मुझे इतना बड़ा सम्मान देगी। भाजपा में ही यह संभव था।’ हालांकि CM पद से हटाए जाने पर त्रिवेंद्र का दर्द भी सामने आया। जब उनसे अचानक इस्तीफे की वजह पूछी गई, तो उन्होंने कहा, ‘इसका कारण जानने आपको दिल्ली जाना होगा।’
मैं 4 चार CM रहा, अब किसी और को मौका मिले
रावत ने कहा कि भाजपा ने छोटे से गांव के कार्यकर्ता को इतना बड़ा सम्मान दिया। 4 साल मुझे सेवा करने का मौका दिया। पार्टी ने सामूहिक रूप से फैसला लिया है कि मुझे अब किसी और को यह मौका देना चाहिए। 9 दिन बाकी हैं चार साल पूरे होने में। मैं प्रदेशवासियों को भी धन्यवाद देना चाहता हूं। 4 साल का मौका पार्टी नहीं देती, तो महिलाओं और युवाओं के लिए योजनाएं मैं नहीं ला सकता था। जो भी जिम्मेदारी लेगा, उन्हें मेरी बहुत शुभकामनाएं हैं।
कांग्रेस ने कहा- इस्तीफे से साबित हुआ कि सरकार काम नहीं कर रही थी
त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता हरीश रावत का बयान सामने आया है। उन्होंने कहा कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने भी मान लिया है कि मौजूदा सरकार कुछ कर नहीं सकी है।अब मैं राज्य की सत्ता में बदलाव देख रहा हूं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे अब किसे लाएंगे, लेकिन 2022 में सत्ता में नहीं लौटेंगे।
विधायक दल की बैठक के लिए भाजपा ने ऑब्जर्वर नियुक्त किए
इधर, पार्टी आलाकमान ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह, महासचिव और राज्य के प्रभारी दुष्यंत गौतम को विधायक दल की बैठक के लिए पर्यवेक्षक बनाया है। दोनों विधायक दल के नए नेता का चुनाव कराने के लिए आज शाम को ही देहरादून पहुंचेंगे। इसे पहले शनिवार को पार्टी ने इन्हीं दो नेताओं को ऑब्जर्वर बनाकर उत्तराखंड भेजा था। दोनों ने नाराज धड़े से बातचीत कर रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को दी थी। राज्य में मंत्रियों और विधायकों के एक धड़े ने केंद्रीय नेतृत्व से राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने की मांग की थी।
सीएम की रेस में कौन-कौन
CM की रेस में राज्य मंत्री सतपाल महाराज का नाम भी बताया जा रहा है। वहीं, चर्चा ये भी है कि अगर धन सिंह रावत और सतपाल महाराज में से किसी एक नाम पर सहमति नहीं बनी तो नैनीताल से सांसद अजय भट्ट और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी में से किसी एक को राज्य की बागडोर सौंपी जा सकती है।
राज्य के गठन के बाद से ही अस्थिरता का माहौल रहा है।
2000 में राज्य के गठन के बाद से कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी के अलावा कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। राज्य में भाजपा का तीसरी बार मुख्यमंत्री बना है, लेकिन पार्टी का एक भी मुख्यमंत्री पांच साल तक कुर्सी पर नहीं रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय उत्तराखंड में पहली बार भाजपा सरकार बनी थी।
उत्तरप्रदेश से अलग होने के बाद उत्तराखंड में भाजपा की सरकार बनी। इस दौरान दो साल के भीतर ही दो मुख्यमंत्री बन गए। सबसे पहले नित्यानंद स्वामी 9 नवंबर 2000 को मुख्यमंत्री बने। इसके एक साल बाद भाजपा के नेताओं ने उनके खिलाफ मोर्च खोल दिया। उन्हें 29 अक्टूबर 2001 को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद भाजपा ने उस समय के दिग्गज नेता भगत सिंह कोश्यारी को विधायक दल का नेता चुना।
कोशियारी ने 30 अक्टूबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके बाद वह 1 मार्च 2002 तक राज्य की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे। 2002 में विधानसभा चुनाव हुए। इसमें भाजपा कोश्यारी के नेतृत्व में राज्य का चुनाव लड़ी थी। इस चुनाव में सत्ता खिसकर कांग्रेस हाथ चली गई। कोश्यारी 123 दिन तक ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे। 2002 चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने और पांच साल, यानी 2007 तक मुख्यमंत्री रहे।
2007 में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को राज्य में पूर्ण बहुमत मिला। इस दौरान पांच साल के कार्यकाल में तीन बार मुख्यमंत्री का चेहरा बदला गया। 8 मार्च 2007 को भाजपा ने भुवनचंद्र खंडूरी मुख्यमंत्री बने, लेकिन 23 जून 2009 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद उनकी जगह 24 जून 2009 को भाजपा ने रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन चुनाव से 4 महीने पहले उनकी कुर्सी चली गई। उनकी जगह दोबारा 10 सितंबर 2011 को भुवनचंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन 2012 के चुनाव में भाजपा की वापसी नहीं हुई। कांग्रेस की सरकार बनी।
5 साल में दो मुख्यमंत्री बदले गए। 13 मार्च 2012 को विजय बहुगुणा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, इसके दो साल बाद उन्हें कुर्सी छोड़ने पड़ी। 1 फरवरी 2014 को हरीश रावत मुख्यमंत्री बने, लेकिन पार्टी की अंदर खाने की राजनीति से जूझ रहे रावत को विधायकों की बगावत के बाद पद से इस्तीफा देना पड़ा। 2016 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा।
रावत को कोर्ट से राहत मिली और वे फिर मुख्यमंत्री बने। 2017 में फिर से राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ। भाजपा की सरकार बनी। इसके बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत को 18 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री बनाया गया। तब से वह राज्य में मुख्यमंत्री हैं। त्रिवेंद्र सिंह राज्य की सत्ता में सबसे ज्यादा सत्ता तक मुख्यमंत्रियों रहने वाले मुख्यमंत्रियों में से एक हैं, लेकिन 4 साल बाद ही अब उनकी कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा है।