Jamshedpur,28 Feb.”राजनीति सेवा या सौदा” विषयक गोष्ठी में हनुमानभक्त कथावाचक और जीवन प्रबंधन गुरु विजय शंकर मेहता ‘उज्जैन’ ने आज राजनीति से जुड़े 4 तत्वों- भ्रष्टाचार,अपराध, धर्म और नैतिकता पर सवा घंटे के व्याख्यान में राजनीति से जुड़े लोगों, नेताओं ,कार्यकर्ताओं,आदि को गूढ मंत्र बताए जो रोचक कथाओं और रामायण – महाभारत के प्रसंगों के उद्धरणों के साथ दिलचस्प और मनोहारी था। पंडितजी ने बताया विभीषण रावण राज में तब तक भ्रष्ट बना रहा जब तक वह सिर्फ राम नाम जपता रहा, लेकिन जैसे ही हनुमान जी का मंत्र मिला कि सिर्फ राम नाम जपने से नहीं राम का काम भी करना होगा तब वह लंका नरेश बन सका अर्थात उसने रावण के अन्याय और अनीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाई और रावण द्वारा लतियाने के बाद राम की शरण मे पहुंचकर राम का काम किया। पण्डितजी ने कहा मैं तत्व बता रहा मायने आप अपनी बुद्धि से निकालें । उल्लेखनीय है कि आज चारों ओर जय श्री राम के नारे।लग तो रहे हैं लेकिन लोगों की समस्याओं के समाधान और भ्रष्टाचार, महंगाई , बेरोजगारी पर आवाज़ नहीं उठ रही। राम का काम अंतिम व्यक्ति के दुख दर्द तक पहुंचकर कम करना हो होता है।
पंडित मेहता ने कहा आजकल भीड़ का समय है, समूह का नहीं जबकि अच्छाई कम लोगों में( समूह) होती है। उम्मीदों का कत्ल हो रहा है।आज जोड़ तोड़ जुगाड़,बनाओ- निबटाओ पर देश चल रहा है। दो कौड़ी के लोग लाखों में बिकने लगे है।यह गोष्ठी स्वर्णरेखा क्षेत्र विकास ट्रस्ट ने माइकल जॉन सभागार में आयोजित की थी। विधायक सरयू राय ने स्वागत भाषण दिया और राजनीति से आंशिक अथवा पूर्ण रूप से जुड़े लोगों को इस व्याख्यान से लाभ उठाने की कामना की। पंडित जी ने सरयू राय को इंगित करते हुए कहा कि आपकी अच्छाइयों से सीखने आया हूँ जो कहीं अड़ियल भी हैं,अन्याय- भ्रष्टाचार का विरोध करने का साहस रखते हैं। आज जबकि उम्मीदों का कत्ल हो रहा है आप अच्छाई की उम्मीद जिंदा रख रहे हैं।
श्री मेहता ने कहा धर्म और नैतिकता पर चलने से राजनीति सेवा जबकि भ्रष्टाचार और अपराध से सौदा बन जाती है। नेता – कार्यकर्ता को चुनना है वह क्या चाहता है। धर्म का मतलब सम्प्रदाय नहीं जीवन की अच्छी बातों को अपनाना है। आज लोग राजकाज मिलते ही सुग्रीव की तरह रामकाज भूल जाते हैं।तब उन्हें हनुमान जी की तरह साम, दाम, दंड और भेद से समझाया जा चाहिए। राजनीति का एक ही धर्म है सेवा। नैतिकता का सूत्र भी बड़े हल्के ढंग से समझाया जब आदमी मन, वचन और कर्म से एक हो जाये। धर्म और नैतिकता के दोहरे मानदंड नही होते, अन्यथा श्री कृष्ण अर्जुन को कारण पर उस समय वाण चलाने का आदेश नही देते जब उसके रथ का पहिया टूट गया था और वह निहत्था होकर पहिया उठाये हुए था। श्री कृष्णा ने कर्ण को याद दिलाया उस समय धर्म और नैतिकता कहाँ गयी जब वनवास के बाद लौटे पांडवों को सुई नोक बराबर ज़मीन नहीं देने और द्रौपदी के चिरहरण में उसने दुशासन की हां मैं हां मिलाई थी।
उन्होंने कहा जब भी कोई गलत काम करो याद रखो दुनिया बनाने वाला सब देख रहा है। गलत करने वाले नेताओं का हल इसी दुनिया मे दिखाई देने लगता है। अतएव युधिष्ठिर ऐसा चुनो जिसके साथ उनके कुत्ते की तरह भी स्वर्ग का अधिकारी बन सको।आज देश उस तीरंदाज़ की तरह चलाया जा रहा जहां तीरंदाज़ पहले तीर मरता है फिर उसके चारों ओर गोला बना कर दम्भ भरता है कि कितना सटीक निशानेबाज़ है जो गोलों के ठीक बीचोबीच निशाना साधता है। यह fabrication of life है। इसी तरह आज अपराध की सुरंग से सत्ता का मार्ग दिखाई देता है। अपराध मिटाना होगा नही तो राजनीति सौदा बन जाएगी। चारित्रिक अपराधों के बढ़ने का एक बड़ा कारण उन्होंने इंटरनेट पर अपलोडेड 20 करोड़ अश्लील वीडियो का भी होना बताया। रामायण के एक पात्र मेघनाद को उन्होंने अपराध का प्रतीक बताया जबकि कुम्भकर्ण को भी भ्रष्ट जिसके अंदर राम के नाम का महात्म्य ज्ञान तो था लेकिन रावण द्वारा प्रदत्त सुविधाओं और मांस मदिरा के कारण कर्म भ्रष्ट वाला करता रहा।
कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों से सभागार खचाखच भरा रहा।