उद्योगों के कब्रगाह बन रहे सरायकेला खरसावां में और एक प्लांट को दफन होने से बचाएं चम्पई सोरेन! जमशेदपुर, 9 फरवरी (रिपोर्टर) : आधुनिक पावर प्लांट में पिछले एक महीने से चल रहे प्रबंधन बनाम श्रमिक असंतोष का मामला कल से अनिश्चितकालीन गेट जाम में जो बदला उसे तोडऩे या खोलने के बजाय आज इसे और तेज कर दिया गया. प्लांट के अंदर न किसी गाड़ी को जाने दिया गया और न ही कोई कर्मचारी-अधिकारी भीतर गया. एक समय बड़े तामझाम के साथ और झारखंड में पावर उत्पादन की दिशा में आत्मनिर्भरता के लिये शुरु किया गया यह प्लांट पहले से रुग्ण बना हुआ है जो वित्तीय संस्थान और बैंकों की कृपा दृष्टि पर किसी तरह चलाया जा रहा है. इस प्लांट से उत्पादित बिजली को झारखंड सरकार ही ले सकती थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. ‘कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाने’ की तरह प्लांट के विस्थापन प्रभावित कामगारों के आह्वान पर कल से गेट जाम कर दिया गया. झामुमो के नेता सह विस्थापित समिति के अध्यक्ष कृष्णा बास्के ने कहा कि कंपनी ने अभी तक 160 लोगों को नियोजन नहीं दिया है और लगभग 40 एकड़ जमीन का मुआवजा भी भुगतान नहीं किया गया है. जमीन लेकर घर देने वाले मामले में 16 व्यक्तियों को मालिकाना हक नहीं मिला है. इसके अलावा कर्मचारियों को भी वेतन बढ़ोत्तरी और सुविधाओं से संबंधित कुछ मांगें है, जिसे लेकर 7 जनवरी से ही सुगबुगाहट और विरोध चल रहा है.
आधुनिक पावर प्लांट 270 मेगावाट x 2 (कुल 540 मेगावाट) क्षमता रखता है. पिछले कुछ दिनों से इस प्लांट में एक ही यूनिट चल रही थी जिसकी दूसरी यूनिट हाल ही किसी तरह खींचखांच कर शुरु की गई.
सरायकेला-खरसावां जिला एक समय लग रहा था उद्योगों का हब बन जाएगा. यहां आदित्यपुर का एशिया प्रसिद्ध औद्योगिक क्षेत्र भी पहले से है, लेकिन आज यह जिला उद्योंगों का कब्रगाह बनता जा रहा है. अभिजीत, कोहिनूर स्टील, सीनी में स्पंज प्लांट समृद्धि, मुडिय़ा का एक प्लांट, उषा मोड़ स्थित एक बड़ा उद्योग तथा चांडिल का बिहार स्पंज राज्य सरकारों की उद्योग चलानेवाली नीतियों पर कलंक साबित हुए हैं क्योंकि एक-एक कर सभी बंद हो गये. आधुनिक पावर प्लांट भी उसी स्थिति में पहुंच गया था लेकिन वित्तीय संस्थानों और बैंकों की पहल पर इसे बचाया गया है.
कोरोना संकट के बाद और उसके पहले छायी मंदी के बीच आर्थिक तंगी से रुग्ण बनी इस कंपनी में वेतन बढ़ोत्तरी और लंबित विस्थापन मुआवजा आदि मांगों को लेकर यह गेट बंद और चक्का जाम का वक्त समझ से परे है. मजदूरों की मांग अपनी जगह सही है. कहा जाता है कि प्रबंधन सात प्रतिशत तक वेतन बढ़ोत्तरी के लिये तैयार भी है लेकिन विस्थापन का मामला कोई आज का नहीं. इसके पीछे कुछ कानूनी पहलू भी छिपे हैं जिनका समाधान इस तरह गेट बंद कर नहीं किया जा सकेगा. यह उद्योग पावर जेनेरेशन का है जहां कच्चे माल की ढुलाई रोक देने से इसकी मौत निश्चित होगी, क्योंकि एकबार शट डाउन होने के मतलब करोड़ों के नुकसान को निमंत्रण देना है. यहां रोजाना करीब 100 से अधिक ट्रकों और हाइवा का आनाजाना होता है, जिसपर रोक लगा दी गई है. पावर प्लांट के लिये ट्रकों में रैक से कोयला लाया जाता है. बताया जाता है कि समस्या की जड़ यहां भी छिपी है. यह क्षेत्र राज्य के वरिष्ठ मंत्री और झामुमो के बड़े नेता चंपाई सोरेन का है. उनके क्षेत्र में इस तरह उद्योगों का कब्रगाह बनना सरकार के लिये बुरा संदेश फैलाएगा. मंत्री और मुख्यमंत्री को पहल कर अबिलंब इसमें समाधान का रास्ता निकालना चाहिये. इस उद्योग की बंदी से जहां वित्तीय संस्थानों और बैंकों का पैसा डूबेगा वहीं सरकार की भी किरकिरी होगी. आंदोलनकारी झामुमो से ही जुड़े हुए हैं.
विस्थापित प्रभावित समिति के अध्यक्ष कृष्णा बास्के ने बताया कि कंपनी प्रबंधन को चाहिए कि आगे बढ़कर इनकी समस्या का हल कर दे। गरीब विस्थापित प्रभावितों को जब तक न्याय नहीं मिल जाता, तबतक आंदोलन जारी रहेगा क्योंकि कंपनी प्रबंधन को समस्या का हल निकालने के लिए कई बार आग्रह किया गया, किन्तु इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाने से गेट जाम की स्थिति उत्पन्न हुई है।
विस्थापित प्रभावित सदस्यों ने मंत्री चम्पई सोरेन को सारी बातें बताई हैं ।