जमशेदपुर, 5 अगस्त (रिपोर्टर): झारखंड के टेक्निकल एजुकेशन के डायरेक्टर पर इतनी अनिमितताओं एवं मनमानियों के साक्षात प्रमाण के बाद भी विभागीय सचिवों का भरोसेमंद बने रहना आश्चर्यचकित करता है. पिछली सरकार तो लगातार उच्च तकनीकी शिक्षा के संसाधनों का ताल ठोकती रही लेकिन जड़ में ‘घुन’ की मानिंद बम्बइया फिल्म की तरह पटकथा को निर्देशित करने के लिए ऐसे डायरेक्टर को नियुक्त कर दिया जिसकी योग्यता क्षमता संदिग्ध रही और जो अनियमित ढंग से शक्तियों का प्रयोग करते हुए बजट की निकासी कर बंदरबांट करता रहा.
बात अमन कम्प्यूटर की चल रही थी कि एक मात्र फर्म के मार्फत अपने पुत्र को लाभान्वित करने के लिए अधीनस्थ पोलिटेक्निक कॉलेजों के प्राचार्यों को कठपुतली की तरह नचाते रहे. जिसने अमन कम्प्यूटर से खरीद के जरिए बंदरबांट में सहयोग किया, वह प्रिय रहा. प्राचार्य की वरीयता, योग्यता, क्षमता उसके पद पर बने रहे का पैमाना नहीं, अपितु वह कितना ‘यस मैन’ और ‘योर्स ओबेडियंट ब्वाय’ की तरह काम करता है, उसके पद पर बने रहने का आधार बना कर रख दिया गया. ऐसा नहीं होता तो सिमडेगा के प्राचार्य नटवा हांसदा और जगन्नाथपुर के एसके महतो जैसे वरीय प्राचार्यों को नहीं हटाया जाता और कम्प्यूटर एवं अन्य पेरिफेरल्स की खरीद के लिए एक केन्द्रीयकृत समिति बनाकर उसका हेड एक जूनियर प्राचार्य को क्यों बनाया जाता. चूंकि खरीद 4 नए पोलिटेक्निक के लिए होनी थी और उक्त दो प्राचार्य उनमें दो कॉलेजों में डायरेक्टर की ‘ठसकÓ के अनुरूप पसरने को तैयार नहीं होते थे. फिलहाल मनमानियों की शिकायत पर जांचोपरांत सरकार ने वर्ष 2019 में अमन कंप्यूटर्स से किसी भी प्रकार की खरीद और भुगतान पर रोक लगा दी है. कई संस्थानों में अमन कंप्यूटर्स के करोड़ों रुपयों का बिल अभी भुगतान के लिए बाकी है, तो इससे निबटने के उद्देश्य से कुछ दिन पहले अपने कतिपय चहेते जूनियर व्याख्याताओं को कुछ संस्थानों में प्रभारी बनाने का प्रस्ताव दिया. डायरेक्टर ने कुछ संस्थानों के जूनियर चहेते प्रभारियों को वर्ष 2018 एवं 2019 में असामान्य रूप से करोड़ों का आवंटन देकर बंदरबांट की. ये आवंटन चार नये संस्थानों को दिया गया लेकिन इन चारों के प्राचार्य कुल आठ संस्थानों के प्रभार में थे. इन आठों में कंप्युटर सप्लाई का करोड़ों में आर्डर अमन कंप्युटर को दिया गया. इसके अलावे दूसरे पुराने संस्थानों लातेहार, खूंटी, महिला पोलिटेक्निक जमशेदपुर एवं बोकारों के प्राचार्य तक दबाव बनाकर अमन कंप्युटर को आर्डर दिलाया गया लेकिन इसकी जानकारी जब तत्कालीन सचिव राजेश शर्मा को मिली तो उन्होंने कोडरमा, साहेबगंज, खरसावां, जगन्नाथपुर, दुमका एवं महिला पोलिटेक्निक दुमका के प्राचार्यों को अमन कंप्युटर को वर्क आर्डर रद करने का निर्देश दिया. उन्होंने अमन कंप्युटर को डायरेक्टर साइंस एवं टेक्नोलाजी के पद पर डा. अरूण कुमार की नियुक्ति के साल 2006 से 2013 तक एवं फिर डायरेक्टर टेक्निकल एजुकेशन के पद पर आने के वर्ष 2017 से 2019 तक दिए गए सभी खरीद की जांच के साथ-साथ उसके लंबित भुगतानों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी. अमन कंप्युटर के मालिक ये सफाई देते फिरते रहे कि इसके पीछे रांची के एक फार्म माइक्रो कंप्युटर्स का हाथ है जिसने उसका आर्डर रद कराया. वैसे बताया जाता है कि माइक्रो कंप्युटर्स को आर्डर दिलाने में किसी राजेश मिश्रा ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी और राजेश मिश्रा का सचिव श्री शर्मा से मित्रवत संबंध था. लेकिन पुन: सचिव आर के शर्मा के जाते ही ‘अमनÓ से खरीद पर रोक लगाने के बावजूद कुछ कंपनियों को मोहरा बनाकर ‘अमनÓ के प्रोपराइटर के माध्यम से ही सभी संस्थानों को खरीद के लिए दबाव बनाया जाने लगा.
मे. क्रिएटिव लैब और अमन कंप्यूटर्स का दिलचस्प मामला
इस बीच हरियाणा की एक कंपनी ‘मे. क्रिएटिव लैबÓ द्वारा कई पोलिटेक्निक संस्थानों को लैब सामग्रियों की आपूर्ति की गयी थी लेकिन डायरेक्टर ने इन सामग्रियों को घटिया स्तर का तथा ऊंची दर का घोषित करते हुए न सिर्फ ‘क्रियेटिव लैबÓ का भुगतान रोक दिया, बल्कि उसे Óब्लैक लिस्टÓ में डाल दिया. ‘क्रिएटेव लैबÓ उच्च न्यायालय में गया जहां से उसे राहत मिली और न्यायालय ने उसे ‘काली सूचीÓ में डालना गलत बताते हुए बाहर निकाला. इस दौरान ‘क्रिएटिव लैबÓ का करोड़ों का बिल फंस गया. तब डायरेक्टर ने ‘अमन कंप्यूटर्सÓ के माध्यम से उन प्राचार्यों को फोन पर निर्देश देकर लंबित भुगतानों को क्लीयर करवाना शुरू किया.
शिकायत करने वाले भी सेट और जांच करने वाले भी
‘अमन कंप्यूटर्सÓ के मार्फत खरीद में मनमानी और भ्रष्टाचार एक नमूना है. निदेशालय में भ्रष्टाचार का खेल अनगनित ढंग से चलता है. विभाग के इंजीनियरिंग और पोलिटेक्निक संस्थानों के प्राचार्यों के भयादोहन का खेल भी कम मनमाने ढंग से नहीं होता. जिस संस्थान का प्राचार्य निदेशक की इच्छा के अनुरूप गलत को सही करने में आनाकानी करता है, उस पर बेनामी-छद्मनामी शिकायती पत्र बम चलाने का एक जाना पहचाना हथकंडा अपनाया जाता है और शिकायतों की जांच के लिए फौरन कमेटी गठित कर दी जाती है. निदेशक के पास दो दिव्य दृष्टि और कायदा-कानून के महान विद्वान व्याख्याता हैं जो प्राय: सभी जाचों का प्रतिवेदन तैयार कर परोसने में महारत रखते हैं. व्याख्याता बी के पांडेय और सुरेश तिवारी विद्वतजन हैं जो सभी जांच संचालित करते हैं. फिर इसकी आड़ में क्या-क्या गुल खिलता है, यह शायद यहां लिखना लम्बा हो जाएगा. ऐसे कई मामले हैं जो राजकीय पोलिटेक्निक कोडरमा, खरसावां, दुमका और रांची आदि के प्राचार्यों के विरूद्ध घटित हो चुके हैं. मजे की बात है कि विद्वान व्याख्याता बी के पांडेय को पूर्व के कुछ सचिव प्रशासनिक रूप से अक्षम एवं निष्क्रिय बताते हुए पोलिटेक्निक प्रभारी प्राचार्य पद से दो-दो बार हटा चुके हैं, लेकिन डायरेक्टर 2018 से उन्हें पुन: प्रभारी प्राचार्य बनवाने का प्रयास करते रहते हैं. दो-तीन बार असफल अटैम्पट कर भी चुके हैं. उल्लेखनीय है कि झारखंड लोक सेवा आयोग ने भी उक्त पांडेय साहब के प्राचार्य की योग्यता को नकारते हुए उक्त नाम की अनुशंसा पैतृक विभाग को नहीं की है.
वरीय व्याख्याता एसके महतो से जगन्नाथपुर पोलिटेक्निक का प्रभार क्यों लिया गया इसके पीछे भी कुछ ऐसी ही बातें बतायी जाती हैं. …..