26 जनवरी, भारतीयों का एक महत्वपूर्ण दिन

वर्षों चले स्वाधीनता संग्राम के पष्चात् जब देश को आज़ादी मिली तो पूरा देश इस विजय पर झुम उठा। सैकड़ो बलिदानों और असहनीय अत्याचारों की पीड़ा पर जैसे मरहम लग गया। सशर्त ही सही पर देश आज़ाद हो गया। नीले आसमान में राष्ट्रगान के साथ जब अपना तिरंगा लहराया तो चारों ओर जैसे वसंती मौसम सी छटा छा गई। होली, दीवाली, ईद और वैशखी सभी त्योहार एक साथ पूरे देश में मनाया गया।
पर, आज़ादी की घोषणा तो 15 अगस्त सन् 1947 को हुई फिर 26 जनवरी को राष्ट्र पर्व के रूप में मनाने का उद्वेष्य जानना भी बहुत जरूरी है।
स्वाधीन भारत के लिए संघर्ष 18वीं सदी से ही छिटपुट आरंभ हो गया था। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीयों ने हल्ला बोल दिया था। आज़ादी की मांग हर तरफ से उठने लगी थी। स्वाधीनता संग्राम के सेनानी मुख्यतः दो हिस्सों में बंट गए थे – गरम दल और नरम दल।
मध्यमार्गियों को ये लगता था कि अंग्रेज स्वतंत्रता और न्याय के आदर्षो का सम्मान करते हैं इसलिए वे भारतीयों की न्यायसंगत मांगों को स्वीकार कर लेंगे इसी क्रम में कांग्रेस चाहती थी कि सरकार को भारतीयों की भावना से अवगत कराया जाना चाहिए। जबकि गरम दल के समर्थक लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल ने ‘निवेदन की राजनीति’ के लिए नरमपंथियों की आलोचना की और लोगों को सरकार की ‘‘नेक’’ इरादों पर नहीं बल्कि अपनी ताक़त पर भरोसा कर स्वराज के लिए लड़ने को कहा और नारा दिया-स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।

वर्ष बीतते रहे, संधर्ष चलता रहा। नरम दल अपनी चाल चल रहा था और गरम दल अपने रणनीति पर कायम था। लाला लाजपत राय और लाठीचार्ज करनेवाले सांडर्स की हत्या गरमदल के भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद और राजगुरू ने की। 8 अप्रैल 1929 को केन्द्रीय विधान परिषद् में बम फेंक कर यह कहा कि-बहरे कानों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है।

इन्हीं गरम दल के दिग्गजों ने 26 जनवरी सन् 1928 को ‘‘पूर्ण स्वराज दिवस’’ के रूप् में मनाने का फैसला लिया और तिरंगा फहरा दिया। पूर्व में नरम दल ने इसको समर्थन नही दिया पर अंग्रेजों की बर्बरता और आनी नाकामियों से हार 31 दिसंबर 1929 की रात में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर सत्र में एक बैठक रखी गई और 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने की शपथ ली ताकि ब्रिटिष राज से पूर्ण स्वतंत्रता के सपने को साकार किया जा सके। साथ ही नागरिक अवज्ञा आंदोलन की रूपरेखा भी तैयार हुई और यह फैसला लिया गया कि 26 जनवरी 1930 को ’पूर्ण स्वराज दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। देश का झंडा फहरा दिया गया। इस फेसले में सभी क्रांतिकारियों और पार्टियों ने अपनी एकजुटता दिखाई। देश की आज़ादी से पूर्व सन् 1930 से लेकर 15 अगस्त 1947 तक पूर्ण स्वराज दिवस यानि 26 जनवरी को ही स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता था।

भारत को आजादी भले ही 15 अगस्त 1947 को मिली लेकिन, 26 जनवरी 1950 को भारत पूर्ण गणराज्य बना। यूं तो भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को पूरी तरह तैयार हो चुका था लेकिन दो महीने इंतज़ार करने के बाद इसे 26 जनवरी सन् 1950 को लागू किया गया। तब से लेकर आज तक यह गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। और इस राष्ट्रीय पर्व का यही इतिहास है।

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