वक्त का पहिया कभी रुकता नहीं है लेकिन कभी कभी थम जाता है। अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई और रोजगार धंधे बंद हो गए, एक वायरस ने पूरी दुनिया को तबाही के रास्ते पर ला दिया। अब हालत यह है कि सभी देश मानते हैं कि कब इससे छुटकारा मिलेगा लेकिन कहा नहीं जा सकता। अपने देश का भी यही हाल है लाख प्रयास के बाद टीका तैयार नहीं हुआ है और जब तक तैयार नहीं होगा वायरस का खतरा मंडराता रहेगा। वैसे वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि कोरोना लहर तीन बार आती है। लाखों लोग चल बसे लाखों बेरोजगार हो गए बेघर हो गए केवल टीका ही उम्मीद की किरण है।
अपने देश की ही बात करें तो 2020 ने अनेक सबक दिए हैं एक तरफ फिर से लोगों को बसाने की चुनौती है तो दूसरी ओर समय के साथ बदलने की, अर्थव्यवस्था तो ऐसे चरमराई है कि अर्थशास्त्री भी भविष्यवाणी करने में असमर्थ हैं. कोरोना का जंजाल ऐसा फैला की देशवासी पूरी तरह से त्रस्त हो गए हैं। हालात बेकाबू हो गए हैं कुछ राज्यों में तो अभी त्राहिमाम की स्थिति है। इस बीच सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू कर दी है लेकिन शिक्षा पूरी तरह चौपट हो गई है अभिभावकों का मानना है बच्चों का तो 1 साल बर्बाद हो गया उन्हें फीस चुकानी पड़ रही है लेकिन ऑनलाइन के चक्कर में पढ़ाई नहीं हो रही है।
इसी तरह जो दूसरे राज्यों में पलायन कर गए थे उन मजदूरों के सामने अपने घर लौट कर काम करना संभव नहीं रह गया। भले ही सरकार आत्मनिर्भर बनने की घोषणा करती रहे लेकिन इसे पूरा होने में तो समय लगेगा ही। 2020 में चुनावों ने अपना रंग दिखाया तो किसानों ने अपना दम दिखा दिया ऐसे अनेक मुद्दे सामने आए जो छिपे हुए थे लोग यह भी चर्चा करने लगे कि संपन्न देश और संपन्न लोग जब इस वायरस से नहीं बच सके तो आम आदमी का क्या। कहीं-कहीं तो यह भी खबर मिली कि लोग चल बसे और परिवार वालों को बताया तक नहीं गया। कल्पना की जा सकती है कि हालात कैसे बने। पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने तो कहा था कि 2020 तक भारत विश्व शक्ति बन जाएगा लेकिन कोरोना ने उस उस भविष्यवाणी को भी सच नहीं होने दिया। मौत के मुंह से वापस आने वालों की भी कमी नहीं है लेकिन जान जोखिम में डालकर अगर लोग काम करते हैं तो जीवन कैसे चलाएंगे।
अमेरिका जैसे देश में तो अभी भी लाखों लोग रोज कोरोना कि चपेट में आ रहे हैं इससे कोरोना की भयावहता को समझा जा सकता है इसी बीच अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव भी हो गया और इसका असर चुनाव में दिखा भी। काम धंधे के बात तो छोड़िए मंदिरों के पट भी बंद हो गए आदमी जाए तो कहां जाए कहां गुहार लगाएं। कई बड़े शहरों में तो अभी भी लॉकडाउन जैसी स्थिति है। केवल कोरोना वायरस की ही बात क्यों की जाए अस्पताल और उनकी सुविधाएं भी कम पड़ गई सरकार के सामने भी कोई दूसरा चारा नहीं था नए अस्पताल बनाया गए। दुनिया को कोरोना ने सबक दे दिया है भले कुछ देश एक पड़ोसी देश पर इसका इल्जाम लगा रहे हैं लेकिन सीधे मुंह कोई नहीं कहता। खुश फहमी यह है कि भारत में कोरोना वायरस नियंत्रण में आ गया। सच क्या है यह समय बताएगा।
बाजार बंद हो गए मॉल बंद कर दिया गया इसका प्रभाव तो बहुत दिनों तक रहने ही वाला है 2020 में ही कई राज्यों में चुनाव हुए कई जगह भाजपा ने बाजी जीत ली लेकिन बिहार में बाजी पलटते पलटते रह गई दक्षिण में भाजपा पैर पसार रही है और बंगाल की तैयारी कर रही है। लगभग महीने भर से कडक़ती ठंड में किसान सडक़ पर है वह भी राजधानी के चारों ओर किसान भी डटें हैं और सरकार भी जिद पर अड़ी है निश्चित है कि अन्नदाताओं का आंदोलन भविष्य में महंगाई को जन्म देगा उसका बोझ भी आम आदमी पर ही पडऩा है। राजनीतिक दलों को तो सिर्फ अपनी रोटी सेकनी है अब आप सोचिए कि क्या होने वाला है। 2020 का सबक यही है कि सावधानी हटी दुर्घटना घटी। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को भी ध्यान में रखा जाए तो पता चलता है वह भी परिस्थिति के शिकार हुए यह अलग बात है कि उनको फ्रंट वारियर कहा गया लेकिन अर्थव्यवस्था कहां जाए उसका प्रभाव तो इस पर भी पड़ा है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी टोटा पड़ गया क्योंकि 2 गज की दूरी रखनी है। शादी विवाह पर भी असर पड़ा रिश्ते नातों में भी दूरियां बढ़ गई, जो जहां था वहीं रह गया कई जगह तो ऐसा भी हुआ कि बेटियां ससुराल गई तो मायके नहीं आ पाई और मायके में रही तो ससुराल नहीं जा पाई।
यह इस तरह की बंदिश लगी की सब परेशान भी हो गए और कोई उपाय भी नहीं बचा। एक तरह से कहा जा सकता है कि खर्च बढ़ गया आमदनी घट गया आप सोच कर देखिए अब 2021 में क्या होगा थोड़ी बहुत राहत तो मिलने लगी है लेकिन मन में डर सबके हैं। 2020 में लोग पुरानी परंपरा की ओर लौट आएं यह अच्छा भी है और आने वाले समय की पीढ़ी को सबक भी मिलेगा अपन को लगता है कि निराश होने की जरूरत नहीं है अंत भला तो सब भला सब कुछ ठीक होगा आप क्या मानते हैं यह आप जाने…।