हम भी निभा सकते हैं सैनिक की भूमिका

आपने देख ली न चीन की दगाबाजी! छह दशकों बाद भी वह पीठ में खंजर भोकना नहीं भूला। एक तरफ वार्ता के टेबल पर भी उलझाए रखता है और दूसरी तरफ हमारे जवानों पर हमले भी करता है। गलवान घाटी की घटना इसका जीवंत प्रमाण है। उसकी बुरी नजर हमारी इस खूबसूरत घाटी पर है। वह वार्ता भी चला रहा है और हमारे सैनिकों की जान लेने को मौत के सामान भी जुटा रहा है। शायद आपको मालूम हो कि वह हमारे द्वारा भेजे गए पैसे से ही मौत के सारा सामान जुटा रहा है। यहां से लेकर पाकिस्तान और नेपाल तक पहुंचा रहा है। और एक हम हैं जो भारत में उसका व्यापार लगातार बढ़ाए जा रहे हैं। करीब 100 अरब डॉलर हर साल उसे दे रहे हैं। ऐसा हमारा चीनी सामान के प्रति बढ़ते मोह के कारण हो रहा है और वह इस पैसे का उपयोग हमारे ही खिलाफ कर रहा है। क्या हमारा अपने वतन के प्रति कोई फर्ज नहीं बनता? क्या राइफल-बंदूक के साथ वर्दियों में सीमा पर लड़ने वाला ही सैनिक हो सकता है? क्या चीन की आर्थिक रीढ़ तोड़कर हम घर बैठे सैनिक की भूमिका नहीं निभा सकते? बहुत अच्छी तरह निभा सकते हैं। लेकिन इसके लिए हमें चीनी वस्तुओं का मोह छोड़ना होगा। उसके सामान का बहिष्कार करना होगा। तो आइए, आज से ही इसका संकल्प लें।

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