सुप्रीम कोर्ट ने दिखाया सेंट्रल एच आर डी को आईना मणिपाल टाटा मेडिकल कॉलेज को नामांकन लेने की दी हरी झंडी

जमशेदपुर :- केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के कतिपय क़ानूनची अधिकारियों और लाल फीताशाही को किनारे लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने आज जमशेदपुर में पी पी मोड पर सद्यः स्थापित मणिपाल टाटा मेडिकल कॉलेज को इस साल से 150 सीटों पर नामांकन लेने की अनुमति दे दी।इस प्रकार झारखंड राज्य को 150 मेडिकल सीटों का इजाफा सुनिश्चित हुआ जबकि गत 6 नवंबर को शुरु हुई नीट आधारित काउंसलिंग से अंत समय में केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय के एक पत्र पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस नए कॉलेज को बाहर कर दिया था।
कॉलेज प्रबंधन की जब अधिकारियों ने सुनवाई नहीं की और देश खासकर झारखंड मे मेडिकल सीटों की कमी को दूर करने की दिशा में मील का पत्थर बन रहे इस कॉलेज में नामांकन को कागज़ी खानापूरी में उलझा दिया तब कॉलेज प्रबंधन ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पहले रांची उच्च न्यायालय में रिट लगाई जहां अदालत ने 24 नवंबर को सुनवाई की तिथि तय की । लेकिन वक़्त की नजाकत और काउंसलिंग समय सीमा की बाध्यता के मद्दे नज़र प्रबंधन गत 17 नवंबर को एस एल पी लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जहां कोर्ट ने पहले 18 नवंबर को ही इसे स्वीकार करते हुए 20 नवंबर को सभी पक्षों को बुला लिया और कहा कि उन कारणों से कॉलेज को नामांकन लेने से नहीं रोक जा सकता जिनके लिए कोई प्रावधान ही नहीं बनाया गया हो। यह कॉलेज यूनिवर्सिटी ऑफ एमिनेंस डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटीज – मणिपाल अकादमी ऑफ हायर एजुकेशन ( माहे ) द्वारा संचालित किया जा रहा है। इस पर यू जी सी का रेगुलेशन 2017 प्रभावी होगा या 2019 इसी तकनीकी गुटके को लगा कर कॉलेज को काउंसलिंग से बाहर कर देने की बात प्रथम दृष्टया किसी को समझ में नही आई और काउंसलिंग के पहले तथा दूसरे राउंड में बच्चों को अंतर राष्ट्रीय स्तर के मानकों पर बने इस कॉलेज में नामांकन से वंचित कर दिया गया। झारखंड की हेमंत सरकार ने इसे एन डी ए सरकार पर राजनीतिक विद्वेष से की गई सौतेला करवाई बताया तो एन डी ए के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास ने कहा कि नागपुर में रोके गए दूसरे नए मेडिकल कॉलेज दत्ता मेघे पर लागू किये गए आदेश को गलतफहमी में इस कॉलेज पर भी लागू कर दिया गया । उच्च शिक्षा सचिव श्री अमित खरे अस्वस्थ हो गए हैं लेकिन उन्होंने कहा है कि अति शीघ्र इस गलतफहमी को दूर कर दिया जाएगा।
जो भी हो लाल फीताशाही का यह जीता जागता नमूना सामने आया जब किसी कॉलेज को मेडिकल कौंसिल अनुमति दे दे फिर उसे कोई दूसरा विभाग उस पर रोक लगा दे और मेडिकल शिक्षा की अनिवार्यता के बाबजूद सीटों की घोर कमी से छात्रों के सपनों की हत्या करे।
उल्लेखनीय है कि झारखंड में पिछले साल खुले अन्य तीन नए मेडिकल कॉलेजों पलामू, दुमका और हज़ारीबाग़ में भी नामांकन पर रोक लगा दी गयी है जहां 100 -100 सीटें है और इनकी शुरुवात पिछले ही साल रघुबर दस की भाजपा सरकार ने कराई थी। यहां झारखंड सरकार पर आवश्यक मानकों एवम नामांकन पूर्व शर्तों का अनुपालन नही कराने का मसला है।

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