गृहस्वामिनी-वर्ल्ड राइटर फोरम की पहल
जमशेदपुर : अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका ‘गृहस्वामिनी’ एवं वल्र्ड राइटर फोरम के संयुक्त प्रयास से फादर्स डे पर ‘थैंक यू पापा, एक शाम कृतज्ञता के नाम’ का आयोजन हुआ. इसमें देश-विदेश के साहित्यकारों ने ‘पिता’ इस भाव को अपने शब्दों में सजाया, पिता से जुड़े संस्मरण को भावांजलि प्रस्तुत की.
सर्वप्रथम शैलेंद्र अस्थाना ने दो कविताएं सुनाईं ‘पिता मर कर भी नहीं मरते’ और ‘किसान होते हैं पिता.’ अमेरिका की डा. श्वेता सिन्हा ने अपने दिवंगत माता-पिता को वंदित करते हुए ‘दूर अनंत मेरे माता-पिता’ कविता मंच को समर्पित किया. ब्रिटेन के शैल अग्रवाल ने अपनी दो कविताएं ‘बिछुड़ते समय’ और ‘अंतिम संवाद’ का वाचन कर श्रोताओं के कानों में रस घोल दिया. ऑस्ट्रेलिया के हरिहर झा अपनी कविता ‘मेरे पिता’ के साथ इस मंच पर प्रस्तुत हुए. अमेरिका से जुड़ी इला प्रसाद ने अपने पिता द्वारा लिखित एक कविता ‘संकल्प’ सुनाई और उसके बाद अपने पिता के लिए स्वरचित रचना ‘पिता के लिए’ प्रस्तुत किया.
प्रस्तुति के अगले चरण में दिल्ली की अमिता प्रसाद ने अपनी लघु कथाओं के माध्यम से वैसी बेटियों की भावनाओं को स्वर देने की कोशिश की, जो किसी कारणवश अपने पिता को कभी धन्यवाद नहीं कर पाई, परंतु भावजगत में उसे महसूस करती रहीं. इसके बाद ब्रिटेन की ऋचा जैन ने अपनी ‘आत्मकथा-भाग 2’ के उस छोटे से अंश को मंच पर प्रस्तुत किया, जिसमें उनकी बड़ी बहन, जो स्पेशल चाइल्ड हैं, के जन्म पर अपने पिता के अनुभव और उनकी प्रतिक्रिया बड़े ही मार्मिक और खूबसूरत अंदाज में दर्ज थे. अमेरिका की रचना श्रीवास्तव ने ‘पापा तुम क्यों तारा बन गए’ और ‘अंबर सा पिता मेरा कभी नहीं रोता है’ द्वारा करुणा और माधुर्य का रस मंच पर बिखेरा. केन्या (अफ्रीका) की रुही सिंह ने उस लड़की की भावनाओं को अपनी कविता में समेटने की कोशिश की, जिस दिन सिर्फ ढाई वर्ष की अवस्था में अपने पिता को खो दिया था. उन्होंने ‘खोई हुई आज मुझे एक चिट्ठी मिली’ सुनाई. मॉरीशस के शिक्षा गुजुधर और झारखंड की रीता रानी जी ने अपने पिता से जुड़े संस्मरणों को मंच से साझा किया. कार्यक्रम का संचालन व धन्यवाद ज्ञापन पत्रिका की संपादक अर्पणा संत सिंह ने किया.