विवादों से पुराना नाता है इस ‘डैम का

चाईबासा, 16 नवंबर (कार्यालय): ‘प्याले में तूफान बने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन चाईबासा के कोविड फंड से खरीद के मामले के पीछे कमीशनखोरी में टकराहट छिपी बतायी जाती है. स्वास्थ्य मिशन चाईबासा इकाई के जिला लेखा प्रबंधक (डैम) सुजीत कुमार चौधरी ने अभियान निदेशक रांची को गत 24 सितंबर को सिविल सर्जन, चाईबासा एवं जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (स्वास्थ्य मिशन) के विरूद्ध शिकायत भेजी कि पीपीई किट का आपूर्ति आदेश 6 अगस्त 2020 को आदित्यपुर की एक फर्म को डीपीएम (जिला कार्यक्रम पदाधिकारी) एवं सिविल सर्जन द्वारा दिया गया लेकिन पीपीई किट की आपूर्ति इस फर्म के बजाय दूसरी कंपनी ने किया और इसका भुगतान रांची की तीसरी कंपनी को किया गया. इस भुगतान के लिए भंडारपाल मनोज लागुरी को धमकी भी दी गयी और दस लाख पचास हजार का भुगतान सिविल सर्जन के हस्ताक्षर से डीपीएम ने करा दिया. डैम चौधरी ने डीपीएम पर उनके साथ अभद्रता करने का भी आरोप लगाया. एक हजार पीपीई किट के लिए कुल रु. 10,50,000/- (दस लाख पचास हजार) के भुगतान का यह मामला था. इसी तरह कोविड फंड से लगभग 13 लाख रुपयों पर बेड, आक्सीजन सिलिंडर आदि खरीद में भी डीपीएम और सीएस द्वारा भुगतान किया गया. पता चला है कि स्वास्थ्य मिशन द्वारा सदर अस्पताल को कोविड फंड से आवश्यक खर्च के मद में रकम हस्तांतरित की गयी थी और उक्त पीपीई किट एवं अन्य सामग्रियां सदर अस्पताल को प्राप्त इस कोविड फंड के मद से सिविल सर्जन ने किया. सिविल सर्जन सदर अस्पताल के उपाधीक्षक (डीएस) भी हैं. उन्होंने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए यह खरीद और भुगतान किया. बताया जाता है कि स्वास्थ्य संबंधी कार्यों के लिए स्वास्थ्य मिशन द्वारा जब कोई फंड सदर अस्पताल अथवा प्रखंडों में स्थित स्वास्थ्य केन्द्रों को भेज दिया जाता है तब उसके व्यय की जिम्मेवारी उन कार्यालयों की होती है. तदनुसार सिविल सर्जन ने पीपीई किट की खरीद का आदेश दिया जिस पर भंडारपाल ने वर्क आर्डर निकाला. इसके लिए बाकायदा निविदा समिति ने सभी निविदादाताओं के टेंडर को खोलकर एल-1 कंपनी आदित्यपुर के इमेज इंडिया को वर्क आर्डर फाइनल किया. कोविड   में तात्कालिक आपूर्ति में असमर्थ होने पर इमेज इंडिया ने कडरू, रांची के आरूषि इंटरप्राइजेज को उसी फाइनल रेट पर सामनों की आपूर्ति और भुगतान लेने के लिए विधिवत अधिकृत किया. इस प्रकार रांची के आरूषि इंटरप्राइजेज को पीपीई किट का भुगतान किया गया जबकि अन्य लगभग 13 लाख रुपयों की खरीद और भुगतान अन्य तीन कंपनियों जेनिथ ट्रेडिंग कंपनी के फार्मास्यूटिकल्स तथा कृष्णा सर्जिकल इम्पोरियम को किया गया. सिविल सर्जन ने इन सामग्रियों का भुगतान सदर अस्पताल को प्राप्त स्वास्थ्य मिशन के कोविड फंड से किया जिसमें डीपीएम टेंडर समिति के एक सदस्य मात्र थे. भुगतान में डीपीएम की कोई भूमिका नहीं थी. सीएस ने सदर अस्पताल के उपाधीक्षक की हैसियत से यह भुगतान उक्त कोविड फंड से किया. दरअसल विवाद की जड़ यहीं जन्मी. जिला लेेखा प्रबंधक ‘डैम चाहते थे कि उक्त सामग्रियों की खरीद का भुगतान स्वास्थ्य मिशन के कार्यालय से वे खुद करें और सदर अस्पताल को जो स्वास्थ्य मिशन का कोविड फंड दिया गया था, उसे मरीजों के खान-पान, वाहन व्यय आदि अन्य खुचरा मदों में किया जाए. सिविल सर्जन ने उक्त लगभग कुल 23 लाख रुपयों का भुगतान क्यों किया, पूरा मामला इसी सवाल से खड़ा किया गया है. बताया जाता है कि सुजीत चौधरी इसी वर्ष कोविड काल में ही यहां आए हैं जिन्हें काफी समय तक प्रभार भी नहीं मिला था. कोविड खरीदारी देखकर किसको लालसा जगी कि अगर भुगतान मिशन कार्यालय से हो तब पीसी की मोटी शुरूआत से चाईबासा पदस्थापन का श्रीगणेश किया जाए. इस बिन्दु पर पता करने से खरीदारी को लेकर पैदा किए ‘प्याले में तूफानÓ का माजरा साफ हो जाएगा. बताया जाता है कि वर्तमान ‘डैम का विवादों से पुराना नाता है. पूर्व में लोहरदगा में महिला लेखा सहायक से छेडख़ानी और इस मामले में गिरफ्तारी सहकर्मियों के साथ बुरे व्यवहार के अलावे पाकुड़ में वित्तीय अधिकार और कार्यों से वंचित किए जाने का मामला भी इनके साथ जुड़ा है. पाकुड़ स्वास्थ्य मिशन के अध्यक्ष सह उपायुक्त ने गड़बडिय़ों की आशंका को भांपते हुए इनके वित्तीय कार्यों को वहां के डीपीएम के जिम्मे लगा दिया था. चाईबासा मिशन अध्यक्ष सह उपायुक्त की आंखों से ये अभी तक आश्चर्यजनक ढंग से बचे हुए हैं, जबकि डैम ने उनकी खुली अवहेलना करते हुए सीधे अभियान निदेशक को शिकायत भेजकर कार्य नियमावली का उल्लंघन ही नहीं किया, अध्यक्ष के मातहत कार्य प्रणाली पर मनमाने सवाल खड़ा किया.

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