विधि पदाधिकारियों की नियुक्ति में नियमों की अवहेलना आदिवासी-मूलवासी एवं अल्पसंख्यकों की उपेक्षा का आरोप

रांची, 29 जून (संवाददाता): इंडियन एसोसिएशन ऑफ लायर्स ने आज मुख्यमंत्री सचिवालय को एक ज्ञापन देकर गत 22 जून को विधि पदाधिकारियों की गई नियुक्ति को तत्काल प्रभाव से रद करने की मांग की है. एसोसिएशन का कहना है कि इस नियुक्ति में झारखंड विधि पदाधिकारी (कार्य) नियमावली 2018 के प्रावधानों पर उल्लंघन करते हुए आदिवासी मूलवासी एवं अल्पसंख्यक समुदाय के अधिवक्ताओं को एक षडयंत्र के तहत उपेक्षित कर दिया गया. एसोसिएशन ने इस नियुक्ति में भाई-भतीजावाद करने का भी आरोप लगाया है.
एसोसिएशन के महासचिव झारखंड लक्ष्मीनारायण महतो, अधिवक्ता मानदेव भगत एवं अधिवक्ता डॉ. साइगल टोप्नो के हस्ताक्षर से यह ज्ञापन समर्पित किया गया. मुख्य सचिव को भी इसकी प्रतिलिपि दी गई. महासचिव लक्ष्मी नारायण महतो ने बताया कि इस पूरी नियुक्ति प्रक्रिया में राजनीतिक छल-कपट रचा गया जिसमें विधि सचिव, विधि विभाग एवं मुख्यमंत्री सचिवालय के कतिपय अधिकारियों ने कथित रूप से षडयंत्र कर मुख्यमंत्री सह विधि मंत्री को गुमराह कर आदिवासी-मूलवासी एवं अल्पसंख्यकों को नियुक्ति के वांछित अधिकार से वंचित कर दिया.
झारखंड उच्च न्यायालय में सरकार की ओर से दीवानी एवं फौजदारी मुकदमों में नियमानुसार नियुक्ति का प्रावधान है. दीवानी मामलों के लिए विभिन्न श्रेणियों में 31 विधि अधिकारियों के नियुक्ति के पद के लिए आवेदन आमंत्रित किए गये थे जिनमें अपर महाधिवक्ता -4, वरीय स्थायी सलाहकार -3, राजकीय अधिवक्ता -5, सरकारी वकील -6, स्थायी सलाहकार -7, स्थायी सलाहकार (खान)-3 पदों पर नियुक्ति की गई. इन 31 नवनियुक्त पदाधिकारियों को अपनी कार्य निष्पादन हेतु चार सहायक एवं अधिवकता लिपिक के पद पर नियुक्ति हेतु चार कनीय अधिवक्ताओं एवं अधिवक्ता लिपिकों के नामों की अनुशंसा करने की शक्ति प्राप्त हैं. इस प्रकार कुल 186 अधिवक्ताओं को एक निश्चित अवधि के लिए रोजगार के अवसर भी प्राप्त होते हैं. इन अवसरों का लाभ झारखंड के आदिवासी-मूलवासी तथा अल्पसंख्यकों को भी मिलना चाहिए. इसी प्रकार आपराधिक मामलों के लिए 58 विधि अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान हैं. इन 58 पदाधिकारियों को अपने कार्य निष्पादन हेतु एक-एक अधिवक्ता लिपिक नियुक्त करने हेतु एक व्यक्ति की अनुशंसा करने की शक्ति है जिससे कुल 116 अधिवक्ताओं की नियुक्ति और रोजगार का अवसर सृजित होता है.
एसोसिएशन का कहना है कि इन पदों पर आदिवासी -मूलवासियों की नियुक्ति होने से शोषण और भेदभाव का अध्याय समाप्त हो सकता है. एसोशिएशन का यह भी कहना है कि उच्च नायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति इन्हीं सरकारी अधिवक्ताओं से चुन कर की जाती है. झारखंड के आदिवासी-मूलवासी के अधिवक्ताओं की नियुक्ति सरकारी वकील के पदों पर करना इसीलिए आवश्यक है कि धरती पुत्रों को हाई कोर्ट का जज बनने का अवसर प्राप्त हो सके. यदि सरकारी अधिवक्ताओं की सूची मे स्थानीय अधिवक्ताओं की पूर्ण भागीदारी नहीं होगी तो उच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति में स्थानीय अधिवक्ता शामिल नहीं हो सकेंगे.
एसोसिएशन का कहना है कि उक्त नियुक्ति अधिसूचना से प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट होता है कि झारखंड सरकार द्वारा विधि पदाधिकारी नियुक्ति में आदिवासी-मूलवासी एवं अल्पसंख्यक वर्गों की उपेक्षा की गई है क्योंकि इन समूह के आदिवासियों की संख्या तुलनात्मक रूप से बहुत कम है. आदिवासी समुदाय से मात्र दो और अल्पसंख्यक समुदाय से एक नियुक्ति की गई है. मूलवासी अनुसूचित जाति और स्थानीय कुर्मी एवं अन्य समुदाय के अधिवक्ताओं की नियुक्ति नहीं की गई है जो झारखंड सरकार की घोषित नियुक्ति नीति की अवहेलना है. एसोसिएशन ने लिखा है कि गत 22 जून की नियुक्ति की अधिसूचना के बाद लालचंद्रहास नाथ शाहदेव राजकीय अधिवक्ता-2 एवं धनंजय कुमार पाठक सरकारी अधिवक्ता ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है. वर्तमान में इन दो विधि पदाधिकारियों का पद रिक्त हैं. विधि विभाग द्वारा झारखँड मंत्रालय को दो उप, दो विधि पदाधिकारी एवं विभिन्न श्रेणी के लोक अभियोजक- अपर अभियोजन के कुल 58 पदों पर नियुक्ति करना बाकी है. एसोसिएशन ने आशंका व्यक्त की है कि उक्त 58 के अलावे रिक्त हुए दो पदों पर फिर आदिवासी-मूलवासी एवं अल्पसंख्यक समुदाय के स्थानीय अधिवक्ताओँ का चयन नहीं किया जाएगा क्योंकि विधि विभाग एवं मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थापित गैर झारखंडी पदाधिकारियों की कार्यशैली उपेक्षापूर्ण है. एसोसिएशन ने लिखा है कि झारखंड हाई कोर्ट में इस बार नवनियुक्त 31 सरकारी वकीलों में मात्र 5 ही मूल झारखंडी, खतियानी वशंज वाले हैं बाकी अन्य दूसरे राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के निवासी हैं.
एसोसिएशन के उक्त तथ्यों के आलोक में मूलवासियों-आदिवासी और अल्पसंख्यकों को प्राथमिकता देने की मांग की है.

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