लोस जीत का श्रेय लूटनेवाले विस हार से क्यों भाग रहे भाजपा जमशेदपुर महानगर अध्यक्ष चुनाव का विवाद

जमशेदपुर, 29 मई (रिपोर्टर) : भाजपा जमशेदपुर महानगर अध्यक्ष के पद पर किसका मनोनयन होगा इसमें अभी कुछ देर है, लेकिन यहां से निकली चिंगारी अब कोल्हान होते हुए पूरे प्रदेश में अपने आगोश में लेने को तैयार है. इससे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश की सांसें तेज हो गई है और वे इस मामले में कोई रिस्क नहीं लेना चाहते. अंदरखाने में जो खबरें तैर रही है, उससे मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश राज्यसभा के लिये भाजपा के घोषित प्रत्याशी हैं. अब उनके समक्ष परेशानी यह है कि जमशेदपुर महानगर को लेकर उत्पन्न विवाद के कारण पार्टी के नेता और विशेषकर विधायकगण लामबंद होने लगे हैं. उन्हें यह बात परेशान कर रखा है कि वैसे तो राज्यसभा पहुंचने का रास्ता उनका सुगम दिख रहा है, लेकिन इसके पूर्व अगर विधायगण उन्हें वोट देने के बदले अपने-अपने पसंदीदा जिलाध्यक्ष की मांग उनसे कर बैठे तो यह उनके लिये यक्ष प्रश्न के समान हो जाएगा. वे किसी को नाराज भी नहीं करना चाहेंगे और सबकी बात सुनकर जिलाध्यक्ष मनोनीत करना भी संभव नहीं होगा. इसलिये पार्टी ने अंदरुनी स्तर से यह तैयारी कर लिया है कि संगठन चुनाव को यथास्थिति में रखते हुए पहले राज्यसभा का चुनाव देख लिया जाए. इसलिये माना जा रहा है कि राज्यसभा चुनाव के बाद ही संगठन का चुनाव होगा, वर्ना संगठन के लिये स्थिति काफी मुश्किल होगी.

मीठा-मीठा गप गप, कड़वा – कड़वा थू क्यों?
भाजपा महानगर अध्यक्ष पद पर चुनाव में इनदिनों धमाचौकड़ी मची हुई है. इसके केन्द्र बिंदू में वर्तमान अध्यक्ष हैं, जिसके पैरवीकार राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास हैं, जबकि विरोधी खेमा भी कमर कसकर मैदान में डटा हुआ है. जहां समर्थक इस बात का उल्लेख करते नहीं थक रहे कि विधानसभा चुनाव में हार में उनकी कोई भूमिका नहीं है. वहीं विरोधी खेमा भी इस बात का सोशल मीडिया से प्रचार कर रहे हैं कि गत लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी विद्युत वरण महतो की ऐतिहासिक जीत पर महानगर भाजपा ने खूब उछल कूद मचाई थी. महानगर भाजपा का कहना था कि उनके प्रयास से ही चारों सीटों पर बढ़त मिली. अब जब विधानसभा चुनाव में चारों सीट पर पार्टी चारों खाने चित्त हुई तो इसका श्रेय कौन लेगा. जब मीठा-मीठा गप गप होता है तो कड़वा कड़वा थू जैसे दोहरी भूमिका क्यों?

रेस में नजर आनेवालों को पद मिलना क्षीण

यह लगभग तय माना जा रहा है कि महानगर अध्यक्ष पद के लिये जितने लोग दावेदारी कर रहे हैं, उनका ख्वाब शायद ही पूरा हो. पार्टी किसी नये चेहरे पर दांव लगाने की तैयारी में है. इसका कारण यह है कि सभी प्रत्याशी पर कोई न कोई गंभीर आरोप है, जिसके लिये पार्टी उन्हें ‘रिजेक्ट’ कर सकती है. इस क्रम में हम सिलसिलेवार संभावित प्रत्याशियों की ‘निगेटिव प्वाइंटÓ की ओर इंगित करेंगे.
पहला : राजकुमार श्रीवास्तव
महानगर के पूर्व अध्यक्ष राजकुमार श्रीवास्तव वर्तमान में केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के करीबी माने जाते हैं. वे इस पद पर बकायदा निर्वाचित हुए थे. लेकिन कालांतर में उनपर कई आरोप लगे और शिकायत उपर तक पहुंचने के बाद उन्हें अपना कार्यकाल खत्म किये बिना ही जबरन पद से हटना पड़ा. प्रदेश संगठन ने पहली बार ऐसे मामले की जांच के लिये कमेटी बनाई थी.

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