रांची: डीजीपी पद के लिए आइपीएस अधिकारियों के पैनल पर बिना विचार किए व प्रतिकूल टिप्पणी कर फाइल लौटाने के मामले में
राज्य सरकार ने यूपीएससी के पत्र का जवाब दे दिया है। राज्य सरकार ने अपने जवाब में बताया है कि हेमंत सोरेन की सरकार बनने के बाद कमल
नयन चौबे को तीन महीने का पर्याप्त समय दिया गया था कि वे राज्य में विधि-व्यवस्था को संभाल लें। इसके बावजूद वे राज्य सरकार की उम्मीदों पर
खरे नहीं उतरे, जिसके चलते उन्हें डीजीपी पद से हटाया गया। उनके ही कार्यकाल में लोहरदगा में सांप्रदायिक तनाव जैसी घटना भी घटी, जो नहीं होनी
चाहिए थी।
जवाब में यह भी लिखा गया है कि यूपीएससी को यह अधिकार नहीं है कि कौन डीजीपी रहेगा और कितने दिनों तक के लिए रहेगा, यह काम राज्य
सरकार का है। यूपीएससी सिर्फ पैनल को स्वीकृत या अस्वीकृत कर सकता है वह भी उचित कारण के साथ। यूपीएससी में पूर्व डीजीपी के एक करीबी हैं
जो झारखंड के मामले में आयोग को प्रभावित करते रहते हैं, उन्हें आयोग से हटाया जाय।
डीजीपी गए दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति पर होनी है सुनवाई
एमवी राव को प्रभारी डीजीपी बनाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर 19 अगस्त को सुनवाई होगी। इसी सिलसिले में राज्य के प्रभारी
डीजीपी एमवी राव सोमवार को दिल्ली रवाना हो गए। वे वहां अपने वकील से मिलकर अपना पक्ष रखेंगे। पूर्व डीजीपी कमल नयन चौबे को बिना किसी
आरोप के ही दो साल के बदले नौ महीने में हटाए जाने व सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस का उल्लंघन कर राज्य में प्रभारी डीजीपी बनाए जाने के मामले
में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर सुनवाई विचाराधीन है।
इधर, प्रभारी डीजीपी को स्थाई बनाने के लिए यूपीएससी को भेजे गए आइपीएस अधिकारियों का पैनल भी अस्वीकृत होकर वापस लौट गया हैं।
यूपीएससी ने भी सरकार के इस पैनल पर गंभीर टिप्पणी की है कि प्रत्येक दो साल पर डीजीपी पद के लिए पैनल पर विचार होना है। जब गत वर्ष ही
पैनल पर विचार हुआ तो एक साल के भीतर दोबारा पैनल पर विचार कैसे हो सकता है। इसी तर्क के साथ यूपीएससी ने पैनल को मानने से इन्कार
कर दिया है.