ब्रज भूषण सिंह
आज तक देश मेडिकल अर्जेंसी से जूझ रहा था लेकिन अब एक नई समस्या लॉ एंड आर्डर अर्जेंसी की खड़ी कर दी गयी। यह तस्वीर साफ होती जा रही है कि देश के भीतर इंसानियत और मानवता बचाने की लड़ाई के बीच एक बहुत बड़ी जमात इस लड़ाई को कमजोर कर तबाही के रास्ते पर ले जाना चाहती है। आज सचमुच बहुत भयावह स्थिति दिख रही है। उस जमात के लोग यह भूल रहे हैं कि जब देश ही नहीं बचेगा तो विचारधारा की लड़ाई वे कहां लड़ेंगे? पिछले 24 घंटों में देश के विभिन्न हिस्सों में कोरोना को एक जाहिल सोच के तहत बढा और फैला दिया गया। पिछले नौ दिनों से देशवासी लॉक डाउन का पालन करते हुए दुनियां के समक्ष उदाहरण पेश कर रहे थे कि सीमित संसाधनों के बावजूद भारत इस विश्वव्यापी महामारी से बहुत कम नुकसान उठाते हुए जीत जाएगा। लेकिन इस राष्टीय अभियान को कुछ लोगों ने पलीता लगा दिया। लाक डाउन का सारा उद्देश्य ही विफल हो गया लगता है।
यद्यपि कि यह वक्त अपनी व्यवस्था की नुक्ताचीनी करने का नहीं है। तथापि जो अनुभव हो रहे हैं, और जो संकेत मिल रहे हैं,उससे तो यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि निपटने के लिये सचमुच हमें 56 इंच वाला कलेजा दिखाना पड़ेगा। इस अभियान में पूरे भारतवासी एकजुट हैं। जो लोग इस अभियान को कमजोर कर रहे हैं, उनके खिलाफ अगर कोई मरौव्वत दिखाई जा रही है तो इससे अभियान में लगे आम लोगों, सरकारी मशीनरी, चिकित्सक सबका मनोबल टूट रहा है। साधनों की कमी की हालत यह है कि अभी जिलों में डाक्टरों और कोरोना के फ्रंट फाइटर्स पुलिस जवानों,स्वास्थ कर्मियों के लिये पर्याप्त मात्रा में पीपीई(पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्युपमेंट्स)भी उपलब्ध नहीं हैं। आज खबर है कि जिलों में 100-200की संख्या में यह पीपीई उपलब्ध हो पाये हैं। ऐसे हालात में जब यह तर्क सुनने को मिलता है कि उस खास जमात का सरकार ने विश्वास जीतने की कभी कोशिश नहीं की इसलिये उसने नाफरमानी कर दी। मतलब अगर आपको नौकरी नहीं मिली तो आप रोड पर उतरकर किसी को भी लूट लें। भारत दुनियां का सबसे उदार लोकतंत्र है। तब देशवासियों की जिम्मेवारी ऐसे संकटों में कई गुणा बढ जाती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों सहित अन्य लोगों से सीधा संवाद कर हालात का जायजा लिया और कल सुबह नौ बजे देश को संबोधित करने की घोषणा की है। अनुमान लगाया जाता है कि कुछ और कड़े कदमों की घोषणा की जा सकती है। प्रधानमंत्री की यह चिंता वाजिब है कि इस संकट में समाज के सभी प्रबुद्ध लोगों और खासकर धर्मगुरुओं की जिम्मेदारी बढ गयी है। जमात और मरकज के नाम पर तरह तरह की जो अफवाहें फैलाई गयी हैं. उसका बहुत बड़ा हाथ आज इस संकट को बेकाबू करने में दिख रहा है। इस देश को राम और रहीम का देश बनाने वालों के समक्ष आज बहुत बड़ा सवाल है कि राम ने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया तो रहीम मानवता के लिये स्थापित हो गये। कोरोना से लड़ते-लड़ते देश आज किस मुहाने पर आ खड़ा हुआ इसका प्रमाण प्राय: हर राज्य में देखने को मिला जहां पुलिस और चिकित्सकों की टीम को दौड़ा दौड़ा कर पीटा गया। अपराधी तत्व जिनका मकसद ही हंगामा होता है, उनको खाद पानी कुछ वीडियो संदेशों ने दे दिया। वैसे संदेश देने वालों को ढूंढकर जेल में डालने में हो रहा विलंब भी नागवार गुजर रहा है। निजामुद्दीन मरकज के बाद इस अभियान को ठेस पहुंची और मनोबल टूटा, उसको रफ्तार देने के लिये कुछ न कुछ उपाय तो तत्काल करने पड़ेंगे। अभी लड़ाई सिर्फ कोरोना से लड़ी जाये. समय की यही मांग है। स्वतंत्रता को 73 सालों मे ंअगर किसी को शिकायत है कि सरकार ने उसका विश्वास जीतने का कोई काम नहीं किया तो उनके लिये अभी बहुत वक्त आएगा। लेकिन उनसे यह तो पूछा ही जाना चाहिये कि जिन संदेशों और अफवाहों पर उनका विश्वास बना, उनके आकाओं ने उनका विश्वास कैसे जीता।