माओवादी नक्सलियों से लोहा लेने की चुनौती

जमशेदपुर, 12 जुलाई : झारखंड में एक बार फिर नक्सली खासकर माओवादी जोर शोर से तांडव करने लगे हैं. ताजा घटना चाईबासा जिला मुख्यालय से सटे बरकेला क्षेत्र की है. माओवादियों ने जो हथकंडा अख्तियार किया है और जंगल क्षेत्र में स्थापित फारेस्ट रेंज आफिस को तथाकथित ढंग से जनता को बेदखल कर बनाया गया घोषित किया है वह सरकार की सत्ता को चुनौती है. इसके पहले उन्होंने पुलिस अधिकारियों समेत तमाम वर्दीधारियों को अपना दुश्मन बताते हुए सफाए की पोस्टरबाजी की वह और भी चिंताजनक है. इन दिनों वे प्रदेश में जिस तरह ताबड़तोड़ हरकते कर रहे हैं उनको हल्के-फुल्के ढंग से लेना मतलब पुराने दिनों की ओर लौटना होगा. वन विभाग के भवन को ऐसे समय ध्वस्त करना और उसे जनता की भूमि पर सरकार का दखल-कब्जा बताना कहीं से स्वीकार्य नहीं हो सकता जब सररकार खुद वनोत्पाद और वन क्षेत्रों में वहां के निवासियों के बासोवास के लिए कई नियम -कायदे लेकर आ रही हो.
नक्सल समस्या पर रांची से लेकर नई दिल्ली, तक अनेक बार मंथन हुआ लेकिन ऐसा लगता है उनके उन्मूलन हेतु, सतत समेकित रूप से समग्र उपाय करने में ईमानदारी नहीं बरती गयी जिसका नतीजा है कि नक्सली दशानन की तरह बार-बार विकराल रूप लेकर आ जाते हैं. राज्य में पिछली सरकार घोषणा करती रही कि झारखंड से नक्सलियों का सफाया कर दिया गया लेकिन जब चुनाव और मतदान का समय आया तब चुनाव आयोग को अनगिनत फेजों में चुनाव संपादित कराना पड़ा. चुनाव आयोग ने एक तरह से सरकार के दावे को खारिज करते हुए माना है कि झारखंड में नक्सलियों का प्रभाव बरकरार है.
नयी सरकार और नया सेट अप कायम होने के बाद वे कुछ ज्यादा ही विध्वंस और खून -खराबे पर उतर आए हैं. कोल्हान को वे अब ‘वारफेयरÓ बनाकर लडऩा चाहते हैं. अपने खोए वजूद को हासिल करने के लिए वे कुछ ज्यादा ही उग्रता प्रदर्शित कर रहे हैं. ‘पीपुल्स वारÓ के जरिए भारत में लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता पलटने और माओवादी सरकार बनाने का सपना देखने वाला यह संगठन कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया (माक्र्सवादी-लेनिनवादी), पीपुल्स वार एवं एम सी सी आी के मिलन से तैया हुआ. 2009 में भारत सरकार ने इसे आतंकवादी संगठन घोषित करते हुए प्रतिबंधित किया. खनन क्षेत्रों में वसूली और अपहरण के बल पर लेवी तथा हथियार लूट के बल पर यह संगठन इस क्षेत्र में अपना राज चलाना चाहता है. पुलिस और सुरक्षा कर्मी पहला निशाना होते हैं. बहुत संभव है कल वे मीडिया को बुर्जुआ घोषित कर उस पर हमला बोले.
राज्य सरकार को कम से कम उन्मूलन नहीं तब नक्सलियों से बचाव की अपनी नीति स्पष्ट कर उसे कड़ाई से लागू करना चाहिए जो होता नहीं दिखता. सर्च अभियान चलता है. पुलिस अभियान चलाकर अभी कदम बैरक में रखती नहीं कि पीछे से नक्सली लौटकर तांडव करने लगते हैं. उन्हें खदेडऩे और क्षेत्र में प्रवेश करने से कैसे रोका जाए इसको सुनिश्चित किया जाना चाहिए. हाल की घटना चिंता बढ़ानेवाली इसीलिए है कि मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की परिधि में आधी रात के बाद माओवादियों ने यह विध्वंस और हिंसा की. यह घटना संकेत देती है कि माओवादी शहर मुख्यालय में भी अपना तंत्र फैला चुके हैं. आम लोगों के जानमाल पर मंडरा रहे खतरे को देखते हुए सरकार को अविलंब जरूरी कदम उठाना चाहिए. पिछले ही दिनों ऐसे नक्सलियों ने एक पुलिस बाडीगार्ड सहित दो व्यक्तियों को शहीद कर दिया था. नक्सलियों के हाथों शहादत बर्दाश्त के लायक नहीं और किसी वर्दीधारी को तिरंगे में लपेट कर विदा न करना पड़े तथा कानून का शासन कायम रहे इसके लिए यूपी की तरह जो भी संभव हो फौरी उपाय करते हुए दीर्घकालिक योजना के तहत सुरक्षा और समग्र विकास सर्वाधिक प्राथमिकता का विषय निर्धारित होना चाहिए. जनता और राज्य की संपदा – परिसंपतियों की रक्षा किसी भी सरकार का संवैधानिक दायित्व और कत्र्तव्य है. क्षणिक राजनैतिक लाभ के लिए नक्सलियों -माओवादियों से किसी भी प्रकार की मुरव्वत का कोपभोजन पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था को भोगना पड़ता है. नक्सलियों-माओवादियों का दर्शन बेमानी साबित होता है. नेपाल उसका खामियजा भोग रहा है. सोवियत रूस को पांव खींचना पड़ा है. चीन की माओवादी सरकार आज पूरी दुनिया के लिए खतरा बन गई है. ग्रामीण नक्सलियों के पीछे भय और सरकारों की उपेक्षा के कारण ही चलने को विवश होते हैं. इस दर्शन को कम से कम झारखंड में दफन कर बचे खुचे अवशेष को दामोदर में अविलंब विसर्जित करने का शंखनाद होना चाहिए. एक ईमानदार ‘ग्रीनहंटÓ अभियान चलाने की जरूरत है, बशर्तें राजधानी से निगरानी के लिए आने वाले बड़े लोग झोला साथ न लाए और यहां के अधिकारियों को अपने एजेंट की तरह न काम कराएं. उस ग्रीनहंट में जो बंदरबाट हुई वह क्षेत्र भ्रमण से देखा जा सकता है कि क्षेत्र कैसे पिछड़ा है और पिछड़ापन दूर करने के नाम पर कैसे-कैसे खेल आज भी चल रहे हैं.

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