ब्रजभूषण सिंह
जमशेदपुर, 9 जनवरी : बाबूलाल मरांडी को लेकर झारखंड में चर्चा जोरों पर है. भाजपा प्रदेश खेमे में छाया सन्नाटा बड़ी योजना और बड़े स्ट्राइक के पूर्व का सन्नाटा मालूम पड़ता है. अखंड बिहार के जमाने से इतिहास के पन्नों को पलटने पर पता चलता है कि झारखंड क्षेत्र में चुनाव में भाजपा की इतनी फजीहत पूर्व में कभी नहीं हुई. इस दशा के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद को जिम्मेवार मान चुके हैं. एक समुदाय विशेष ‘वैश्य’ को सर्वाधिक महत्व देने का नतीजा भाजपा के रणनीतिकार जोरशोर से पार्टी के अंदरखाने उठा रहे हैं. आज भाजपा आदिवासी समाज, पंजाबी बिरादरी, बंगाली समाज और भूमिहार समेत कतिपय अन्य अगड़ी जातियों से कट सी गई है. पिछले पांच वर्षों के दरम्यान कई ऐसी घटनाएं हुईं और खुलकर भेदभाव किया गया कि बहुत जल्द उसका फल सामने आ गया.
सूत्रों का कहना है कि भाजपा को झारखंड में फिर से खड़ा करने के लिए नया समीकरण बनाने की तैयारी चल रही है. इस समीकरण को सिद्ध करने के लिए भूपेन्द्र यादव को कमान दी गई है जो अपने मिशन में लगे हुए हैं. भाजपा कांग्रेस के उस रवैये को अपना बड़ा हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहती है जिसके लिए कांग्रेस चर्चित रही है अर्थात वह गठबंधन की सरकार को चैन से चलने शायद ही देती है. कांग्रेस में मंत्रिमंडल को लेकर भीतर ही भीतर घमासान चलने की धड़ाम-भड़ाम आवाज बाहर सुनाई दे रही है. आलमगीर आलम को मंत्री बनाना दूसरे मुस्लिम नेता को नहीं पच रहा. दूसरा मुस्लिम पक्ष खुलकर मंत्री पद के लिए हाथ-पांव मार रहा है लेकिन ‘कोटा प्रणाली में ‘हाउस फुल बताकर उसे संभावना नहीं दिख रहा. सदन के बाहर और सदन में भी वह आक्रामकता दिखा रहा है.यह पक्ष शायद चैन से नहीं बैठे. इसी तरह कई अन्य विक्षुब्ध और फेंस लाइन (सीमा रेका) पर बैठे लोग विधायक चुने गए हैं. कांग्रेस के ऐसे सभी नेताओं तो ताडऩे में भाजपा लग सकती है जैसा कर्नाटक में हो चुका है.
झामुमो के भीतर भी सबको एकसूत्र में बांधकर रखना हेमंत सोरेन के लिए आसान नहीं होगा. वहां भी मंत्री पद को लेकर एक अनार सौ बीमार वाली दशा है. कार्यवाहक अध्यक्ष और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दुमका सीट छोड़कर अंतत: किसे वहां से चुनाव लड़ाते हैं, वह कदम भी झामुमो की एकजुटता पर कितना असर डालता है या मजबूती लाता है, देखनेवाली बात होगी. हर परिस्थिति में झामुमो के लोग पार्टी के प्रति कितना समर्पण रखते हैं, इस पर भी भाजपा नजर गड़ाए हुए है.
झाविमो के अध्यक्ष श्री मरांडी ने कार्यसमिति को भंग कर एक सस्पेंस बना दिया है. यह भी चर्चा है कि श्री मरांडी ने किस प्लान के तहत इस पर गठबंधन से अलग रहकर विधानसभा चुनाव में अब तक सर्वाधिक संख्या में सीटों पर चुनाव लड़ा. झाविमो को लेकर चुनाव में यह चर्चा भी उड़ी कि भाजपा के लिए भी आदिवासी मतों में बिखराव लाने के लिए यह प्लान किया. भाजपा की सोच है कि उसके 25 विधायकों के अलावा सरयू राय, अमित यादव और कमलेश सिंह को अपने साथ लाने में सफल होगी. आजसू के दोनों विधायकों और झाविमो के कम से कम हो लोगों को साथ लाने में वह सफल हो सकती है.
श्री मरांडी के इन्हीं कदमों के आधार पर यह चर्चा बलबती है कि वे भाजपा में आ रहे हैं. भाजपा ने भी विधायक दल के नेता का चुनाव फिलहाल टालकर अटकलों का बाजार गर्म किया हुआ है. अटकलों के अनुसार श्री मरांडी को भाजपा अपना आदिवासी चेहरा बनाकर पुराने दिनों की राह टटोल रही है और राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद की पुस्तक ‘अग्नि की उड़ान में वर्णित ‘खंडहरों में तलाश करो. बहुत कुछ काम की चीजें मिल जाएं अनुभव को अपनाना चाहती है. अर्जुन मुंडा के रहते प्रदेश में बाबूलाल को आदिवासी चेहरा बनाने की कवायद के पीछे तर्क है कि बाबूलाल संथाल समाज से आते हैं जिनकों आदिवासी अपना बहुसंख्य समाज मानता है. वैसे भी अर्जुन मुंडा को लेकर तर्क दिया जा रहा है कि वे केन्द्र की राजनीति में आ गए हैं और करिया मुंडा वाला रोल निभाएंगे जैसे पूर्व में होता रहा है. प्रदेश अध्यक्ष के लिए भाजपा किसी अगड़ी जाति से अपने नेता के ऊपर लाना चाहती है. पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को लेकर प्रदेश में जो समीकरण अस्त-व्यस्त हुए या नाराजगी फैली उसको पाटने के लिए चल रहे मंथन के कारण ही सन्नाटा पसरा दिख रहा है.