पूर्वी-पश्चिम से ही क्यों बने महानगर अध्यक्ष भाजपा जमशेदपुर महानगर अध्यक्ष पद पर विवाद फेसबुक में रेस हैं कार्यकर्ता

जमशेदपुर, 30 मई (रिपोर्टर) : भाजपा महानगर अध्यक्ष को लेकर जहां अंदरुनी खेमेबाजी तेज हो गई है, वहीं पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ विरोधी खेमा भी सोशल साइट को एक प्लेटफॉर्म के रुप में इस्तेमाल कर रहा है. वैसे तो विधानसभा में करारी हार के बाद से ही चर्चाओं का बाजार गर्म है, लेकिन हाल में जब राज्य के सभी जिलाध्यक्षों को बदलने का फरमान आया, लोग पुन: अपने-अपने मोबाइल के साथ सक्रिय हो गये. सोशल साइटों में इस बात पर अधिक जोर दिया जा रहा है कि अबतक महानगर अध्यक्ष की कमान जिसे भी सौंपी गई, वह या तो जमशेदपुर पूर्वी या फिर जमशेदपुर पश्चिम के निवासी थे. सिर्फ देवेन्द्र सिंह तत्कालीन जुगसलाई निवासी थे. हालांकि देवेन्द्र सिंह बिष्टुपुर मंडल के सक्रिय कार्यकर्ता हैं तथा पिछले कई वर्षों से सोनारी में निवास कर रहे हैं.
फेसबुक में कई लोग इस बात पर पोस्ट कर रहे हैं कि पश्चिम और पूर्वी के कार्यकर्ताओं को कई बार यह पद दिया गया तो इसबार क्यों न महानगर के अन्य दो विस क्षेत्र (पोटका और जुगसलाई) से किसी कार्यकर्ता को यह अवसर दिया जाए, ताकि भाजपा का नारा ‘सबका साथ…Ó बना रहे. ज्ञात हो कि अबतक महानगर अध्यक्ष बननेवालों में अभय सिंह, रामबाबू तिवारी, चंद्रशेखर मिश्रा, दिनेश कुमार (सभी जमशेदपुर पूर्वी विस सीट के निवासी), बिनोद सिंह, राजकुमार श्रीवास्तव, नंदजी प्रसाद (सभी जमशेदपुर पश्चिम विस सीट के निवासी) आदि शामिल हैं. देवेन्द्र सिंह महानगर अध्यक्ष रहते हुए जुगसलाई निवासी थे. बेशक यह मुद्दा सोशल साइटों में उठ रहा है, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं का समर्थन भी इसमें मिल रहा है, जिससे इस बिंदू को दरकिनार नहीं किया जा सकता है. प्रदेश संगठन को भी इस मुद्दे से अवगत करा दिया गया है.
यह भी चर्चा हो रही है कि जिन नेताओं के विधान सभा चुनाव का प्रभारी बनाया गया था, उनकी रिपोर्ट कार्ड को भी देखा जाये। यदि उन्होंने अपने प्रत्याशियों की जीत में भूमिका निभाई है तो उनको पुरस्कृत किया जा सकता है, वरना उनको कोई पद क्यों दिया जाए?

जमीनी पकड़ रखने में नाकाम रहे हैं नंदजी
महानगर अध्यक्ष की दौड़ में यह जिम्मा पूर्व में एकबार संभाल चुके नंदजी प्रसाद भी हैं. उनकी निगेटिव प्वाइंट यह है कि वे पार्टी के बड़े नेताओं के साथ तालमेल तो बिठा लेते हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं की अनदेखी की शिकायत अक्सर होती रहती थी. साथ ही जमीनी स्तर पर पकड़ नहीं होना उनकी नाकामियों में से एक है. हालांकि जब उन्हें महानगर अध्यक्ष बनाया गया था तो पार्टी के एक बड़े नेता की अनुकंपा पर बनाया गया था. गत विधानसभा चुनाव में उन्हें पोटका का संयोजक बनाया गया था, जहां प्रत्याशी की हार हुई. यही नहीं उनके गृह विस कदमा में भी पार्टी प्रत्याशी को गत चुनाव से कम वोट मिले. यह बिंदू उनके राह में रुकावट बन सकते हैं.

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