पुलिस की ‘आत्मा’ इतनी कमजोर क्यों हो रही?

ब्रजभूषण सिंह
जमशेदपुर, 22 जुलाई : भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) संवर्ग के अधिकारियों को पुलिस महकमे की आत्मा माना जाता है. यह आत्मा थोड़ी भी कमजोर पड़ी तब भटकाव स्वाभाविक है. जमशेदपुर के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो ऐसा लगता है कि तीन-तीन आत्माओं के पद और उनके ऊपर प्रमंडल, क्षेत्र और मुख्यालय में बड़ी-बड़ी आत्माओं के बैठे होने के बावजूद यह कमजोर क्यों दिख रही है जिसके परिणामस्वरूप भटकाव के रूप में अपराधियों, असामाजिक गतिविधियों वाले लोगों तथा कानून को मजाक समझनेवालों का बोलबाला बढ़ गया है.
ताजा घटना बिरसानगर में मंगलवार की रात एक युवक की हत्या की है. युवक के अधिवक्ता होने और राजनीतिक कार्यकर्ता होने के कारण आज इसकी गूंज हो रही है. राजनीति भी इसमें शामिल हो गयी है. सवाल, एक हत्या का नहीं क्योंकि पिछले ढाई-तीन माह में कई असामजिक हरकतें और वारदातें सामने आ चुकी हैं. यह निर्विवाद है कि पुलिस को अपराध घटित होने से रोकने की शक्ति नहीं है लेकिन इससे बढ़कर उसके पास कानून का शासन कायम रखने की इतनी शक्ति जरूर है कि अगर उसका निष्पक्षता और परिश्रमपूर्वक इस्तेमाल करे तो बड़े से बड़े असामाजिक तत्व कहां बिल में समाएं जो उनकी सात पुश्तें बाहर निकलने की न सोच सकें.
क्या कारण है कि जमशेदपुर जैसे महत्वपूर्ण औद्योगिक संस्कार वाले ‘मिनी भारतÓ में पुलिस कानून का राज कायम करने में रहते-रहते भयंकर रूप से चूक रही है? क्या वह हताश हो गयी है? क्यों? क्यां इसे समय-समय पर नेतृत्व का मार्गदर्शन नहीं मिल रहा? क्या वह परिश्रम नहीं कर रही है? कुछ मामले ऐसे भी सामने आए हैं जब पुलिस संवेदनशील नहीं दिखी. कदमा के 14 वर्षीय बालक की एक मंदिर परिसर में मौत पर एक मां और बहन के विलाप व आपबीती पर पुलिस ‘कठकलेजीÓ बन गयी और अनुसंधान के नाम पर लीपापोती की. इस बिरसानगर की हत्या के मामले में जैसा कि विभिन्न वक्तव्यों से पता चलता है कि उक्त अधिवक्ता युवक जमीन विवाद और कथित नाजायज भूमि धंधेबाजों से खतरे की आशंका पहले से जता रहा था और थाने को इसकी सूचना दी थी. सोशल मीडिया फेसबुक पर वह लगातार अपनी मन:स्थिति प्रकट कर रहा था. क्यों बिरसानगर थाना ने उसके मामले पर संवेदनशीलता नहीं दिखाई? कुछ ही दिन पहले डीआईजी ने जमशेदपुर में अपराध बढऩे पर एक समीक्षा बैठक की थी और सभी पदाधिकारियों को चेताया था. बावजूद इसके पुलिस पदाधिकारी नहीं चेते.
कहीं तो कुछ बात है कि पुलिस चूक रही है. पुलिस नेतृत्व और सरकार को तत्परतापूर्वक टीम वर्क में आई कमी का कारण ढूंढकर स्वच्छ मन से निराकरण करना चाहिए. इस सरकार का गठन जनता ने पिछली सरकार से ऊब कर किया. अब पिछली सरकार चलाने वाले लोग कहने लगे हैं कि 6 माह में ही ला एंड आर्डर फेल हो चुका है. इस कोरना संकट में स्कूटर-मोटर साइकिल सवारों की हेलमेट चेकिंग और फाइन काटकर लोगों पर बोझ बढ़ाने के बजाय पुलिस को अपराधियों पर नियंत्रण और कोरोना से लड़ाई में जज्बे को बनाये रखने के लिए पुलिस ‘आत्माओंÓ का मनोबल तत्काल बढ़ाना चाहिए.

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