जमशेदपुर: वैश्विक महामारी कोरोना ने लौह नगरी जमशेदपुर को आहिस्ता आहिस्ता अपनी आगोश में ले लिया है। संक्रमितों की संख्या लगातार बेतहाशा बढ़ रही है। मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। यहां की जनता भयभीत और त्रस्त है। कोविड रिपोर्ट हो गया और पहले से कोई बीमारी हो तब भगवान मालिक। कैंसर, किडनी , हृदय रोग, शुगर, ब्लड प्रेशर,पैरालिसिस आदि के पुराने मरीजों के नियमित इलाज की व्यवस्था ठप हो चुकी है और दुर्भाग्य से इन्हें कोविड होने पर सब अस्पताल हाथ खड़े कर दे रहे हैं। टी एम एच पर जिनको नाज़ था वे मुँह छिपाए चल रहे ।प्रशासन बेबस दिख रहा है। प्रशासनिक पदाधिकारी इस विकट परिस्थिति में आम जनता की रक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर योद्धा की तरह काम अवश्य कर रहे हैं लेकिन साधनों की कमी और इंफ्रास्ट्रक्चर अभाव की कमी उन्हें भी लाचार कर रहे हैं।
संकट की इस मनहूस घड़ी में यहां के दो दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और पूर्व मंत्री सह विधायक सरयू राय के बीच “लम्हों की खता” पर वाक युद्ध छिड़ा है।इस विवाद में झाविमो से भाजपा में वापसी करने वाले अभय सिंह भी कूद पड़े हैं। दोनों पक्षों के बीच शब्दों के तीखे वाण चल रहे हैं। दोनों के बीच उपजा यह विवाद उनके समर्थकों में सामुदायिक संक्रमण की तरह फैल रहा है। यह विवाद शौचालय तक आ पहुंचा है। ऐसे में जनता के जेहन में एक यक्ष प्रश्न बिजली की तरह कौंध रहा है कि क्या इन दोनों दिग्गजों को एक दूसरे पर शब्दों के वाण चलाने से ज्यादा जरूरी कोविड मरीजों के अलावे अन्य नियमित मरीजों के इलाज के लिए लड़ाई करना क्यों नही हो रहा है ? क्या कोरोना काल का चिकित्सा संकट दिल झकझोरने वाला नहीं है ? कहीं ऐसा न हो “कोरोना चिकित्सा संकट ” में इस ओर से मुँह फेरे रहना नया “लम्हों की खता” नहीं बन जाय ?
सरयू राय ने रघुवर दास के घर में घुस कर पटखनी दे डाली और शेर बन गए तो रघुवर दास पराजय से तिल मिलाकर जख्मी शेर बन गए। सरयू राय ने यह साबित कर दिया कि वे ना सिर्फ राजनीति के चाणक्य है वरण उसके माहिर खिलाड़ी भी हैं। जनता ने उनको भरपूर साथ दिया है। देश खास कर प्रदेश में उनकी विशिष्ट पहचान बन गयी है।वे आज कुछ कहते या बोलते हैं तब सरकार सुनने को विवश होती है। पांच साल तक मुख्यमंत्री रहकर झारखंड में इतिहास रचने वाले रघुवर दास चुनावी चौपड़ पर सरयू राय से मात खा गए। भले ,इस पराजय को रघुवर दास और उनके समर्थक पचा नहीं पा रहे हैं , लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से प्रशासन को भी उनकी बातों की उपेक्षा करना आसान नही होगा ।
लेकिन कोरोना से अलग सरयू राय और संघटन – गठन उनके निशाने पर हैं। सरयू राय अपने हिसाब से उन्हें हर सवाल का जवाब दे रहे हैं। बहरहाल, इन दोनों दिग्गजों के बीच उपजा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। जैसे-जैसे कोरोना का रौद्र रूप बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे इन दोनों दिग्गजों के बीच उपजा विवाद गहराता जा रहा है। और, अब विवाद शौचालय पर आ पहुंचा है। दो दिग्गज राजनीतिबाजों के इस विवाद में बशीर बदर की दो पंक्तियां “दुश्मनी जमकर करो लेकिन गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त बनें तो शर्मिंदा ना होना पड़े” सटीक बैठती हैं। बहरहाल, कोरोना काल में दोनों दिग्गज आपसी विवाद भुला कर जनता को चिकित्सा सेवा मैं राहत दिला सकें तो यह संभवत कोरोना संकट से जमशेदपुर की मुक्ति का मार्ग होगा और असंख्य मरीजों की दुआएँ मिलेंगी।उल्लेखनीय है कि कल एक किडनी संबंधित अनिवार्य डायलिसिस मरीज को टी एम एच ने भर्ती लेने से इनकार किया, टाटा मोटर्स अस्पताल ने वही समस्या बताई।ब्रह्मानंद ने उल्टे पांव विदा किया।खतरा मोलते हुए लुटने मरने के लिए उसका परिवार उसे लेकर रात में रांची गया।