लोकगीतों के नाम रहा गृहस्वामिनी का ऑनलाइन होली मिलन
जमशेदपुर : होली के पूर्व संध्या पर अंतरराष्ट्रीय ई पत्रिका ‘गृहस्वामिनी’ की ओर से “अंतर्राष्ट्रीय लोकगीत होली मिलन” का आयोजन ऑनलाइन किया गया. फगुनहट की बयार बह चली, जब रंग बिरंगे चेहरे स्क्रीन पर हंसते-मुस्कुराते होली के लोकगीत गा उठे. इंदिरा तिवारी ने इसका संचालन किया.
आयोजन की प्रथम प्रस्तुति स्निग्धा उपाध्याय (मूलतः बिहार की वर्तमान में कोलंबिया निवासी) की रही. इसके बाद “चलल बा फगुनहट बयार, हर्षत बा मनवा हमार” भोजपुरी गीत को सिवान (बिहार) की रुचिका राय ने प्रस्तुत किया. भागलपुर के साहित्यकार और शिक्षाविद कुमुद रंजन झा ने अंगिका भाषा में एक फौजी की पत्नी के मनोभावों को होली के लोकगीत के रूप में श्रोताओं के समक्ष रहा. अंडमान निकोबार की कल्पना वर्मा ने राजस्थानी भाषा में “मोर बोले रे” गीत के माध्यम से एक प्रेयसी के अपने प्रेमी को माउंट आबू की धरती पर पुकार का गीत प्रस्तुत किया.
इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए लौहनगरी के वरिष्ठ साहित्यकार ज्योत्स्ना अस्थाना ने होली का खाका प्रस्तुत करनेवाली रचना ‘सखी री फागुन की रुत आई’ की प्रस्तुति दी. छत्तीसगढ़ से उर्मिला देवी उर्मी ने राजस्थानी गीत प्रस्तुत की तो यूपी के सहारनपुर से समीधा नवीन शर्मा ने ब्रज का लोकगीत ‘लाल रंग डारो, गुलाबी मिलाईके’ प्रस्तुत किया. चंपारण (बिहार) की प्रियंका झा ने कृष्ण को अर्पित अपने गीत में ‘कान्हा तुम संग खेलूं अबीर’ के बोल गाये. पुन: समिधा ने भी कृष्ण को याद करते हुए होली से जुड़ी अपनी एक अन्य रचना की भी प्रस्तुति की, वहीं पूर्वी घोष ने सद्भावना का संदेश मंच को दिया. गायत्री ठाकुर ने राम सीता के अवध में होली खेलने के चित्र को गीत में प्रस्तुत किया. अंतिम प्रस्तुति इंदिरा तिवारी की मैथिली लोकगीत रही, जिसे उन्होंने वाद्य यंत्र बजाते हुए मनोहारी रूप में प्रस्तुत किया. कार्यक्रम का समापन संपादक अर्पणा संत सिंह के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ. कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ जूही समर्पिता, नीरजा राजकुमार, रीता रानी, शशिकला सिन्हा, पुष्पांजलि मिश्रा, डॉ रत्ना मलिक, कल्पना लालजी, अंजू घरभरन का योगदान रहा.