धनबाद : 11 जुलाई प्रतिनिधि ” जब मौसा मेहरबान तब टाइगर पहलवान ” ……कोई जनप्रतिनिधि न सिफऱ् टाइगर बनकर सज्जनों पर गुर्राने की हिमाकत करता है बल्कि अपने काले साम्राज्य का विस्तार करने का भी दुस्साहस करता है तब पीछे कोई न कोई वरदहस्त होता है । धनबाद जिले के एक विधायक के मामले में भी ऐसा ही हुआ। पहले सरकार और अब पूरी प्रदेश पार्टी ‘रामराज’ में पांव पखारने और सरकारी ज्यादती साबित करने के लिए आ पहुंची।
जब यह ‘विकास दुबे ‘ पहली बार विधायक बने तब उनका काला धंधा उतना ज़ोर नहीं पकड़ा था। हालांकि कोल किंग सुरेश सिंह और सिंह मेंशन की कोल लिफ़्िटंग करने से काली दुनिया की अंदर की कहानी से वह वाकिफ़ तो थे ही, लेकिन जैसे ही अपनी पार्टी की सरकार बनी उन्होंनेअपना स्वतंत्र साम्राज्य विस्तार करना शुरू किया। यह ‘विकास ‘ कहते भी रहे कि ‘मौसा’ इस राज्य का मालिक हैं और मेरा कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। कोयला, लोहा, बालू, परिवहन, पेट्रोल पंप, आउटसोर्सिंग, सिविल वर्क सर्वत्र उनकी काली छाया पडऩे लगी। हार्डकोक भट्ठों पर भी उनकी नजऱ पड़ी। इस उद्योग के मालिकों ने घुटने नहीं टेके। सरकार के मुलाजि़म ने ही लोडिंग रेट तय कर दी लेकिन डीसी को हड़का कर वह रेट भी लागू नहीं होने दिया। नेताजी को हर हाल में हार्डकोक के धंधे में अपनी पकड़ चाहिए था। लिंकेज के मामले में कोयला मंत्रालय से अपनी बात मनवा ली। गुजऱात में अपने समाज की सभा में तिजोरी खोलकर ‘विकास दुबे ‘ ने सभी को मोहने का काम किया था। राज्य में बालू के खनन पर रोक रही लेकिन टाइगर के गुर्गे दिनरात दामोदर नदी को खोदते रहे। प्रशासन ने उसके परिसर में बालू के टाल को देखा लेकिन कार्रवाई करने की हिम्मत अधिकारी जुटा नहीं पाएं।
जब पार्थो भाट्टाचार्य बीसीसीएल के सीएमडी थे तो कोयले की बिक्री में ई-ऑक्शन पद्धति को लागू किये थे। यही ऑक्शन टाइगर के लिए वरदान साबित हो गया। पुलिस एवं कोयला अधिकारी जो टाइगर के साथ जुड़े रहे ने यह बात फैला दी कि उसके इलाकों में कोई ऑक्शन में भाग लेगा तो ग्रामीण उसे कोयला उठाने नहीं देंगे, जबकि ग्रामीणों से कहा गया कि एकबार कोई बाहरी कोयला लेने घुस गया तो पहले की तरह लोडिंग का पैसा नहीं मिल पाएगा। इसी तरह आउटसोर्सिंग कम्पनियों से कहा गया कि सारे लोग टाइगर के साथ हैं। उसकी बात नहीं मानेंगे तो ग्रामीण खदान चलने नहीं देंगे। ग्रामीणों से कहा गया कि अधिक हल्ला करोगे तो कम्पनी भाग जाएगी। हम जब बोले तब हल्ला करना। कम्पनी से प्रति व्यक्ति 16 हज़ार लेकर तीन हज़ार बेरोजगारों को देकर टाइगर और मसीहा बन गए जबकि कम्पनियों को लगा कि उसने ही लोगों को मैनेज कर दिया तभी हल्ला नहीं हुआ। डर के इस उद्योग को ही बैलेंस कर उसनेअपने साम्राज्य को यहां तक पहुंचाया, जहां पुराने माफिय़ा भी उन्हें नजऱाना देने लगे। सात हजार टन का कोयला दो-ढाई हजार में उठाकर कोयला कम्पनी को खोखला करने का काम लगातार जारी रहा। पहले तो आउटसोर्सिंग में साझेदारी, फिऱ उसका परिवहन का कार्य हथियाना, फिऱ सभी को अपने पम्पों से तेल लेने के लिए बाध्य करना..सर्वत्र टाइगर एंड कम्पनी छा गई।
इस कारोबार में राज्य के तत्कालीन ” युवराज “, बी सी सी एल के एक सेवानिवृत निदेशक, बैंक के एक रिटायर अधिकारी एवं छत्तीसगढ़ के एक उद्यमी भी शामिल हैं। उक्त कोयला अधिकारी निदेशक रहते हुए विधायक की कम्पनी को मदद करते रहे। जब वे विधायक के इलाके में जीएम थे तब से वे उनके करीबी रहे।
टाइगर का पूरा साम्राज्य सरकार..ख़ासकर खाकी की बदौलत फ़लता-फूलता रहा। ख़ाकी ने करवट ली तो टाइगर पिंजड़े के अंदर समा गया।