जमशेदपुर : फिर शहर में अपराधियों ने गोलियां तड़तड़ा दी. मानगो में 23 अगस्त की देर रात मानो अपराधी बेखौफ थे. दो स्थानों पर उन्होंने फायरिंग की.
पूर्वी सिंहभूम में अपराधी लगातार पुलिसिंग को धत्ता बता रहे हैं. पुलिसिंग को क्या हुआ है, समझ में नहीं आता. शहरियों के लिए यह चिंता का विषय बन गया है. ऐसा लगता है, पुलिस का तंत्र कहीं कुछ मिस कर रहा है. उसका खुफिया तंत्र, आमलोगों में उसकी पैठ, निगरानी और आसूचना संग्रह के साथ फौरी कार्रवाई आदि जो आम फार्मूले हैं वह या तो काम नहीं कर रहे या उनको तवज्जो नहीं दी जा रही. दूसरी ओर ट्विटर पर पुलिस सक्रिय दिखती है.
राज्य प्रशासन और सरकार को इस विषय पर चिंतन करना चाहिए. कुछ लोग ट्विटर पर पुलिस प्रशासन को उलझाए रखते हैं. ट्विटर ‘बहादुरÓ किसी विषय को पुलिस मुख्यालयों, सीएमओ आदि को टैग कर ट्विट कर देते हैं जहां से तुरंत जिला को रिट्विट होता है, फिर पुलिस महकमा उस ट्विटर पर एक्शन तथा उस एक्शन को जस्टीफाई करने वाले साक्ष्य, फोटो आदि की तलाश में थाना प्रभारियों को लगा देा है. इस प्रकार पुलिस जमीन पर पुलिसिंग के सिद्धांतों का सतत अभ्यास करने-कराने के बजाए सोशल मीडिया पर जवाब बनाने में लग जाती है जबकि पुलिस के कामों में फील्ड ड्यूटी पर ही ज्यादा जोर होना चाहिए. थानेदार हाट-बाजार, सामाजिक लोगों, संस्थाओं से संपर्क करने से अधिक ‘हाई टेकÓ रूपी व्हाट्सएप, ट्विटर आदि पर कार्रवाइयों और औपचारिकताओं को ही शायद पूरा करने में व्यस्त रहते हैं. गली-मुहल्लों में असामाजिक तत्व क्या षड्यंत्र-साजिश कर रहे होते हैं, यह पता करने का एक ही तरीका हो सकता है सिविल सोसायटी से संपर्क और आसूचनाओं पर तत्परतापूर्वक कार्रवाई. एक और असामान्य स्थिति देखी जा रही है कि पुलिस थानों को वाहन चेकिंग से राजस्व वसूली का लक्ष्य भी दे दिया जा रहा है. पुलिस का ध्यान उस लक्ष्य को प्राप्त कर ड्यूटी पूरा करने की ओर भी लगा रहता है. अब जमीन संबंधी जांच का काम भी पुलिस को सौंपा जाने वाला है. एसआईटी गठित कर टाटा में जमीन अतिक्रमण संबंधी काम भी पुलिस को दिये जाने की बात समझ में नहीं आती. सर्वोच्च न्यायालय का पहले से ही आदेश है कि थानेदार और अंचलाधिकारी पर जमीन को अतिक्रमण से बचाने की जिम्मेवारी है. उनके दायरे से बाहर का मामला होने पर आरक्षी अधीक्षक और उपायुक्त उसे देखें. फिर एसआईटी गठित कर पुलिस को उसके मूल काम से अलग उलझाने की कोई आवश्यकता दिखाई नहीं पड़ती.
लॉकडाउन की शुरूआत 23 मार्च से ही देखा जाए तो शहर में कई बड़ी वारदातें हो गयीं जिसमें गोलीकांड से लेकर हत्या के भी कई मामले शामिल हैं. इस दौरान कोल्हान डीआईजी ने कम से कम दो बार समीक्षा बैठक कर अपराध नियंत्रण के प्रति जनता को आश्वासन दिया. जमशेदपुर की पुलिस यहां के गुंडा-बदमाशों को शांत करने में बहादुरी दिखाने में पीछे नहीं रही, लेकिन अभी कहां चूक हो रही है जो अपराधी बेखौफ होकर कांड कर गुजर रहे हैं?