नई दिल्ली, 22 फरवरी (ईएमएस): मोदी सरकार के सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय ने एक विशेषज्ञ समिति के सुझावों पर ओबीसी क्रीमी लेयर की गणना में वेतन को भी जोडऩे की सिफारिश की है। ऐसा होने पर ओबीसी वर्ग की एक बड़ी तादाद को सरकारी नौकरी और शिक्षा में मिलने वाले आरक्षण पर असर पड़ेगा।
केंद्र की बीजेपी सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) क्रीमी लेयर की मौजूदा आय सीमा में बदलाव करने पर विचार कर रही है। खबरों के मुताबिक मोदी सरकार ओबीसी क्रीमी लेयर की मौजूदा आय सीमा को सालाना 8 लाख से बढ़ाकर 11 लाख करने पर विचार कर रही है। अगर सरकार यह कदम उठा लेती है तो नए नियम की वजह से बड़ी संख्या में ओबीसी समुदाय के लोग आरक्षण कालाभ लेने से वंचित हो जाएंगे।
एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के अनुसार मोदी सरकार के सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय ने इस विषय पर एक विशेषज्ञ समिति के सुझावों पर ओबीसी क्रीमी लेयर की गणना में वेतन के समावेश की सिफारिश की है। सिफारिश में कहा गया है कि वेतन को कुल आय का ही हिस्सा माना जाना चाहिए। ऐसा होने पर ओबीसी वर्ग की एक बड़ी तादाद को सरकारी नौकरी और शिक्षा में मिलने वाले आरक्षण पर असर पड़ेगा।
इसका सीधा असर ये होगा कि अगर मोदी सरकार इस सिफारिश पर अमल करती है तो नए नियम के तहत कई लोग आरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगे। फिलहाल यह मोदी सरकार के हाथ में है कि वह इन सिफारिशों को मंजूर करती है या नहीं। बता दें कि पिछले सप्ताह सरकार ने रक्षा मंत्री राजनाथ ङ्क्षसह के नेतृत्व में मंत्रियों के एक समूह को ओबीसी क्रीमी लेयर को परिभाषित करने और आठ लाख रुपये की सालाना आय की सीमा में संशोधन करने की जिम्मेदारी दी गई है। फिलहाल ये मुद्दा अभी विचाराधीन है।
गौरतलब है कि क्रीमी लेयर शब्दावली का उपयोग ओबीसी वर्ग की जातियों के उन लोगों के लिए होता है, जो आर्तिक रूप से ज्यादा समृद्ध और शिक्षित और सक्षम हैं। वर्तमान में 8 लाख सालाना या उससे ज्यादा आय वाले ओबीसी वर्ग के व्यक्ति को क्रीमी लेयर में रखा गया है। क्रीम लेयर के निर्धारण के लिए तय नियमों के अनुसार वेतन और खेती से होने वाली आय को कुल आय के दायरे से बाहर रखा गया है।