घरेलू काम करनेवाले 14 वर्षीय नाबालिग के मामले में सवाल
जमशेदपुर 20 जुलाई: जुबेनाइल जस्टिस (केयर एण्ड प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन) एक्ट 2015 बच्चों पर क्रूरता रोकने के उद्देश्य से बनाया गया। यह कानून कहता है कि वैसा कोई भी व्यक्ति जिसके पास बच्चे का जिम्मा हो या नियंत्रण, उसे पीटता हो, उसकी उपेक्षा करता हो, दुव्र्यवहार करता हो अथवा दुर्भावना से उसके साथ किसी प्रकार का नकारात्मक व्यवहार करता हो जिससे उस बच्चे पर अनावश्यक मानसिक या शारीरिक चोट पहुंचती हो तब वह व्यक्ति दंड का भागी होगा जिसमें उसे तीन वर्ष का कारावास अथवा एक लाख रूपया जुर्माना अथवा दोनों की सजा भोगनी पड़ेगी।
इस कानून में यह भी प्रावधान किया गया है कि अगर बच्चे के साथ उक्त प्रकार का दुव्र्यवहार किसी संस्था का प्रबंध करनेवाले व्यक्ति या नियुक्त व्यक्ति द्वारा किया जाता हो जिसके जिम्मे बच्चे की देखरेख और अभिरक्षा सौंपी गयी हो तब वैसी स्थिति में वह व्यक्ति पांच वर्षों के सश्रम कारावास और पांच लाख रूपये तक का जुर्माना भरने की सजा का भागीदार होगा।
इसके अलावे यह भी प्रावधान किया गया है कि उपर्युक्त क्रूरता के चलते अगर बच्चा शारीरिक रूप से विकलांगता का शिकार हो जाता हो अथवा उसे कोई मानसिक बीमारी हो जाती हो अथवा मानसिक रूप से दैनंदिन कार्यों तक के लिए अयोग्य हो जाता हो अथवा उसकी जान या किसी अंग पर खतरा पैदा हो जाता हो तब इस स्थिति में उस आरोपी व्यक्ति को कम सेकम तीन वर्ष से अधिकतम दस वर्षों कीसजा और पांच लाख रूपए तक का जुर्माना किया जाएगा।
भारत सरकार द्वारा बच्चों पर क्रूरता रोकने का कानून बनाए जाने के बावजूद कदमा थाना क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति के एक नाबालिग 14 वर्षीय बच्चे की उसको अभिरक्षा में लिए एक व्यक्ति के घर में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो जाती हैं और वह व्यक्ति आजाद घूम रहा होता है तब भारत सरकार द्वारा बच्चों पर क्रूरता रोकने के लिए बनाए गए उपर्युक्त कानून का क्या लाभ हुआ?
नीलू महानंद नामक एक महिला ने कदमा थाना प्रभारी को आवेदन कर शिकायत लिखाई कि उसके 14 वर्षीय पुत्र आशु महानंद की हत्या कर पंखे से लटका दिया गया और इसे बच्चे द्वारा फांसी लगाने की घटना का रूप दिया गया जबकि उस बच्चे को भाटिया बस्ती ई सी सी फ्लैट के सामने निवास करने वाले देबू मुखर्जी ने 3 साल से अपने यहां घरेलू काम कराने के लिए रखा था। महिला द्वारा शिकायतनामा में आगे जो बातें लिखी गयी हैं वह ह्दयविदारक है लेकिन इतना स्पष्ट है कि पिछले तीन साल से वह बच्चा देबू मुखर्जी की अभिरक्षा में था और उसकी मृत्यु देबू मुखर्जी के घर में हुई। सवाल उठता है कि इस नाबालिग बच्चे की मानसिक स्थिति पर ऐसा क्या कुठाराघात हुआ जिससे वह कथित रूपसे फांसी पर लटकने को विवश हुआ? क्या उपर्युक्त जुबेनाइल जस्टिस एक्ट इस मामले में प्रभावी नहीं होता? आश्चर्य है, कदमा थाना ने कांड संख्या 111/20 दिनांक 15 जुलाई अंकित किया लेकिन इसमें जुबेनाइल एक्ट की धारा नहीं लगाई। पुलिस ने आई पी सी 302 तथा एस सी/एस टी प्रिवेंशन्स आफ एट्रोसिटी एक्ट 1989 के अंतर्गत कांड दर्ज किया । यहां स्पष्ट है कि बच्चा देबू मुखर्जी की अभिरक्षा में उसका घरेलू काम करता था। इस प्रकार अगर जुबेनाइल एक्ट की धारा भी लगाते हुए मामला दर्ज किया जाता तो उसे तत्काल जेल भेजने में कोई द्विविधा नहीं रहती और पुलिस पैरवी के दबाव से भी बची रहती।
पुलिस ने एक और अविश्वसनीय रवैया दिखाया जब अभियुक्त को थाने में लाकर पुन: छोड़ दिया। पुलिस ऐसा कैसे कर सकती है, सहज विश्वास नहीं होता। फिर यहीं से शुरू होता है तरह-तरह की चर्चाओं का दौर जो पुलिस की प्रतिष्ठा के सर्वथा विपरीत और शर्मनाक लगता है।
इतना कड़ा कानूनी प्रावधान होने के बावजूद दिवंगत बच्चे की मां का कहना है कि अभियुक्त देबू मुखर्जी लड़के पर मानसिक एवं शारीरिक रूप से अत्याचार करता था, ठीक से खाना, कपड़ा, दवा भी नहीं देता था। मां से मिलने भी नहीं देता था न घर आने देता था। बंधुआ मजदूर बना कर रखा था। लड़का इससे काफी भयभीत रहता था। 14 जुलाई को देबू बनर्जी ने उस बच्चे की काफी पिटाई की थी। 15 जुलाई को देबू मुखर्जी ने दोपहर तीन बजे फोन कर बताया कि तुम्हारे लड़के ने फांसी लगा ली है।
नीलू महानंद अपने परिवार के साथ न्यू श्याम नगर, जाकिर भट्ठा गैस गोदाम के पीछे रहती है। घटना की तात्कालिक प्रतिक्रिया और विरोध को देखते हुए पुलिस देबू मुखर्जी को थाने ले गयी, लेकिन पता नहीं किन कारणों से उसे छोड़ दिया जिससे पुलिस की कार्यशाली पर सवाल उठना शुरू हो गया।
कोल्हान डी आई जी ने आज कतिपय सामाजिक कार्यकर्ताओं के ट्वीट पर कार्रवाई करते हुए जमशेदपुर पुलिस को मामले पर गहन संज्ञान लेने को कहा और जमशेदपुर पुलिस ने भरोसा दिया कि आवश्यक कार्रवाई की जा रही है। यह ट्वीट सामाजिक कार्यकत्र्ता धर्मचंद पोद्दार एवं सरस्वती महतो ने किया। ट्वीटर पर मुख्यमंत्री एवं डी जी पी के संज्ञान में भी लाया गया।