नई दिल्ली. ६ नवंबर देश में मुसलमानों के प्रमुख संगठन जमीयत उलेमा -ए- हिन्द ने बुधवार को कहा कि राम जन्म भूमि – बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर उच्चतम न्यायालय का जो भी फैसला आएगा, उन्हें स्वीकार्य होगा. साथ ही संगठन ने मुस्लिमों से फैसले का सम्मान करने की अपील भी की है.
जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि मस्जिद को लेकर मुसलमानों का मामला पूरी तरह से ऐतिहासिक तथ्यों और इस साक्ष्य पर आधारित है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी मंदिर या किसी उपासना स्थल को तोड़कर नहीं कराया गया था.
जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने पत्रकार वार्ता में सभी से अपील की है कि फैसला कुछ भी आए, वे शांति बनाए रखें. जमीयत की ओर से जारी एक बयान में उनके हवाले से कहा गया है कि अयोध्या मामला महज भूमि विवाद का मामला नहीं है बल्कि कानून की प्रधानता की परीक्षा का मामला है.
मदनी ने कहा, ‘प्रत्येक न्यायप्रिय व्यक्ति मामले में फैसला ठोस तथ्यों एवं साक्ष्यों के आधार पर चाहता है, न कि धर्म के आधार पर’ साथ ही उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने भी कहा है कि यह सिर्फ मालिकाना हक के लिए दायर कराया गया मामला है.
उन्होंने कहा, ‘हम हमारे पूर्व के रुख को दोहराते हैं कि उच्चतम न्यायालय तथ्यों एवं साक्ष्यों के आधार पर जो कुछ भी फैसला सुनाएगा, हम उसे स्वीकार करेंगे और हम मुस्लिमों और अन्य सभी नागरिकों से उच्चतम न्यायालय के फैसले का सम्मान करने की अपील करते हैं.’
इस महीने कभी भी आ सकता है फैसला
शीर्ष अदालत धार्मिक भावनाओं एवं राजनीति के लिहाज से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में 17 नवंबर से पहले फैसला सुना सकती है. क्योंकि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई उसी दिन सेवानिवृत्त हो रहे हैं. वह राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे हैं.