रांची, 28 जुलाई (प्रतिनिधि): राज्य सरकार के उच्च तकनीकी शिक्षा विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ हायर टेक्निकल एजुकेशन) में 2017 में तत्कालीन सचिव और एवं बहुचर्चित महाधिवक्ता ने डायरेक्टर टेक्निकल एजुकेशन पर एक पदाधिकारी की इस तरह खेल रचकर नियुक्ति कराई जो गैरकानूनी है. आश्चर्य है, इस खेल में सफल पदाधिकारी अनियमित ढंग से नयी सरकार में भी उसी पद पर अभी तक काबिज हैं जबकि नयी सरकार चुन-चुन कर ऐसे ‘खिलाडिय़ों’ को बेनकाब कर रही है और उन पर जांच करा रही है. मजे की बात है कि उक्त डायरेक्टर टेक्निकल एजुकेशन पहले डायरेक्टर साइंस एंड टेक के पद पर थे जिन्हें 2013 में इसी हेमंत सरकार ने उन्हें उक्त पद के लिए अयोग्य करार देते हुए अन्य कई अनियमितताओं के कारण सेवा से ही हटा दिया था. फिर चार वर्षों में ऐसा क्या हुआ और खासकर 2017 में क्या हुआ कि उन्हें डायरेक्टर साइंस एंड टेक से ऊंचे एचओडी और तीन वर्ष के कार्यकाल वाले एक्स कैडर डायरेक्टर टेक्निकल एजुकेशन के पद पर भाजपा सरकार में नियुक्त कर दिया गया. विभाग के तत्कालीन सचिव और सरकार के बहुचर्चित महाधिवक्ता ने जिनका विधायक सरयू राय से अच्छा खासा टकराव हुआ था, मिलकर ऐसा क्या कानून निकाला जो एक कथित अयोग्य और कमतर क्षमतावाले पदाधिकारी को पहले से ऊंचे ओहदे पर लाकर सेवावधि तक ‘आजीवन’ बने रहने के लिए अनियमित रूप से बिठा दिया.
पूरे मामले को उच्च तकनीकी शिक्षा विभाग के वर्तमान सचिव और मुख्यमंत्री के सचिव आदि के संज्ञान में लाकर इसकी जांच के लिए पत्राचार भी किया गया है और उच्च तकनीकी शिक्षा की गरिमा और इसके कैडर आधारित पदाधिकारियों, शिक्षकों, प्राचार्यों और अन्य कर्मचारियों के मनोबल को बनाए रखने के लिए उक्त अधिकारी को अविलंब हटाने की मांग की गयी है.
ऐसा क्या हुआ कि डायरेक्टर साइंस टेक्नोलाजी से सेवामुक्त के चार साल बाद डायरेक्टर टेक्निकल एजुकेशन जैसे सरकार के एचओडी स्तर के उच्च पद पर इस व्यक्ति को नियुक्त कर दिया गया जिस पद की वह योग्यता ही नहीं रखता है. सरकार का एक बाध्यकारी नियम है कि इस पद पर नियुक्त होने वाला व्यक्ति झारखंड राज्य के किसी इंजीनियरिंग कॉलेज का प्राचार्य, प्रोफेसर होना चाहिए, जबकि उक्त व्यक्ति महाराष्ट्र के किसी निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर थे.
2013 में हेमंत सोरेन की सरकार ने ही इन्हें सेवामुक्त किया था जो 2017 में भाजपा के राज में बहुचर्चित महाधिवक्ता से परामर्श लेकर इन्हें डायरेक्टर साइंस एंड टेक के पद के बजाय ऊंचे पद डायरेक्टर टेक्निकल एजुकेशन पर बिठा दिया गया. इनकी बर्खास्तगी अहत्र्ता अक्षमताा के प्रश्न प उच्च स्तरीय आईएएस समिति की रिपोर्ट पर की गयी थी.
पता चला है कि हाई कोर्ट के जिस आदेश की आड़ में यह खेल किया गया उसमें माननीय उच्च न्यायालय ने उक्त पदाधिकारी को हटाए गए पद अर्थात डायरेक्टर साइंस एंड टेक के पद पर पुनर्नियुक्ति का आदेश 2016 में दिया है. विधि विशेषज्ञों के अनुसार उस समय चाहे जो परिस्थिति बनी हो उसमें कानूनी परामर्श सरकार के विधि विभाग से लिया जाना चाहिए था, परंतु ऐसा नहीं कर उक्त चर्चित महाधिवक्ता से लिया गया.
नियुक्ति का यह तरीका और इस पद पर बैठकर स्थानांतरण-पदस्थापन, नये कॉलेजों को बजट आवंटन आदि का मनमाना खेल चलाने का पूरा मामला काफी दिलचस्प है. स्थानांतरण और बजट आवंटन के पीछे भी जो खेल चलता है वह वर्तमान सचिव शैलेश सिंह की नजर से बच रहा है.
इस संबंध में डायरेक्टर टेक्निकल एजुकेशन अरूण कुमार ने कहा कि उनका मामला हाईकोर्ट से सेटल हैं और विभाग का पुनर्गठन हुआ जिसके बाद यह पद सृजित हुआ और उनकी नियुक्ति जेपीएससी ने भी कंफर्म किया है.